हिमालय से आए मेहमान पक्षी चक्रवाक,सुनार नदी में करते नजर आ रहे मस्ती
टा में पक्षी प्रवास करते हुए
Himalayas from the Himalayas come to the Sundar river, Bird Chakravak
दमोह/हटा. सुनार नदी मे उच्च हिमालयी क्षेत्रों मे पाए जाने वाले चक्रवाक पक्षी दिखाई दे रहे हैं। नदी के पानी मे तैरते व किनारो पर बैठे हुए यह पक्षी बहुत ही आनंदित हो रहे हैं।
जानकारों के अनुसार उच्च हिमालय क्षेत्रों मे इन दिनो बर्फवारी होने के कारण वहां की झीलों मे बर्फ जम जाती है। ऐसे मे उन सरोवरों मे रहने वाले पक्षी अपेक्षाकृत गरम स्थानो की ओर आ जाते हैं। यह पक्षी पूरे सर्दियों के मौसम मे यहां हमेशा देखे जा सकते हैं। इन दिनों सुनार नदी के हारट, हटा पर दिखाई दे रहे नारंगी या हल्का कत्थई रंग के पक्षी जिसकी गर्दन और सिर बादामी होता है। गर्दन के चारों ओर एक काला कंठ रहता है। लेकिन मादा कंठ रहित होती है। यह पक्षी हमेशा नर-मादा के जोड़े मे ही रहता है यहां के लोग इसे चकई-चकवा के नाम से जानते है।
पं श्याम सुंदर दुबे बताते है कि दिन के समय चकवा-चकवी जोड़े मे रहकर विचरण करते हैं, लेकिन दिन ढलने के बाद ही अलग-अलग हो जाते हंै। नदी के किनारे पर नर तो दूसरे पर मादा होती है, जो रात्रि मे अनेक बार बोलकर एक दूसरे को संदेश देते रहते हैं। सूरज की किरण के साथ मिल जाते हैं और जोड़े में पूरे दिन विचरण करते हैं। हालांकि साहित्यिक मान्यता के अतिरिक्त इस बात मे कोई तथ्य नहीं है।
वेदों मे भी है उल्लेखित
पं. श्यामसुंदर दुबे का कहना है कि पक्षी का प्राचीनतम उल्लेख अश्वमेघ के अंतर्गत बलिजीवों की सूची में ऋग्वेद तथा यजुर्वेद मे हुआ है। इसके संबंध मे प्रचलित किवदंती है, जो कवि समय के रूप मे प्रसिद्ध होकर भारतीय प्राचीन और अर्वाचीन काव्यों मे प्रयुक्त हुई है। जिसका सबसे पुराना प्रयोग अथर्ववेद मे दंपति की परस्पर निष्ठा और प्रेम जैसी चारित्रिक विशेेषता के संदर्भ मे हुआ है। अंधविश्वास, किवदंती और काल्पनिक मान्यता से युक्त इस पक्षी की तथाकथित उपयुक्त विशेेषता ने इसे कवि समय तथ रूढ उपमान के रूप मे प्रसिद्ध कर दिया है।
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