Drought in Bundelkhand farmer worried
छतरपुर/ दमोह. बारिश न होने के कारण बुंदेलखंड में सूखे की आहट दिखाई दे रही है, मूंग, उड़द, मूंगफली, सोयाबीन, पिपरमेंट, धान की फसलें सूख गई हैं, किसानों के माथे पर चिंता की लकीरे खिंच गई हैं। किसान बोले कर्ज लेकर बोई थी फसल, अब पलायन करने की नौबत आ रही है। वहीं नदियों के स्टापडैम के कढ़ी, शटर बंद न होने से पानी बह गया है।
जिन नदी,नालों में दिसंबर जनबरी तक पानी हुआ करता था। वह जलस्रोत इस साल अगस्त में ही दम तोड़ते दिखाई देने लगे है,जो गर्मियों में भीषण जलसंकट की आहट है। सबसे खराब हालात वनांच क्षेत्र में है यहां तालाब,कुआं खाली पड़े हैं। जंगलों में वन्यजीवों को भी पानी की किल्लत अभी से देखने मिल रही है। यहां भेड़ बकरियों को जंगलों में ले जाकर चराने वाले चरवाहों का कहना है कि जंगलों में इस बार अवर्षा का असर अभी से दिख रहा जंगलों में अक्टूबर नवंबर माह तक बहने वाले नाले अगस्त में ही सूख गए जिससे पानी की परेशानी होने लगी है।
बुधवार मडिय़ादो के समीप एक जंगली नाले के सूखने के बाद उसमें सैकड़ों मछलियां अकाल मौत के मुंह में चली गई। ऐसा कई नालों का हाल है। जिसमें मछलियों की पानी सूखने के कारण मौत हो रही है। दरअसल यह मछलियां जून-जुलाई के समय
मानसून की बारिश के बाद नदी नाले उफान पर होने के साथ छोटे नालों की ओर अंडे रखने धार की विपरीत दिशा में चली आती है।
जानकार ऐसा बताते है कि मछलिया अंडे छोडऩे के बाद वापस गहराई वाले स्थानों पर लौट जाती है, जहां से वे आई थीं। लेकिन इस बार बारिश ने ऐसा दगा दिया की मछलियों को वापस लौटने के मौका ही मिला। बारिश अचानक चली गई और छोटे नाले में प्रजनन के लिए आई मछलियां वापस नहीं हो सकी परिणाम स्वरूप वह रहे सहे पानी में अंतिम सांसे गिन रही है ।
यहां हो रही अनदेखी
सूखे की आहट के बावजूद जिम्मेदारों के द्वारा पानी सहेजने कोई पहल नहीं की जा रही मडिय़ादो क्षेत्र में बर्धा, पाली, पाठा, निवास, मादो, मलवारा, कनकपुरा, तिंदनी, देवलाई, काईखेड़ा, शिवपुर, नारायणपुरा, रजपुरा आदी गांवों में विभिन्न योजनाओं से छोटे-छोटे नालों में बर्षा जल संचय करने के मकसद से लाखों खर्च कर निर्माण कराए स्टाप व चेकडेम रख रखाव व घटिया निर्माण के कारण समय से पहले जमींदोज हो गए, जो शेष सलामत बचे हैं। उनके गेट बंद नहीं किए परिणाम स्वरूप पानी बेकार बह रहा है। अगर समय रहते प्रशासन नहीं जागा तो वह दिन दूर नहीं जब ग्रामीणों को पानी के लिए पसीना बहाना पड़ेगा।