महिला से प्रेम विवाह किया था
आपको बता दें कि इस शख्स ने 1998 में एक महिला से प्रेम विवाह किया था। जबकि 2014 में उसने इरोड की एक अदालत में पत्नी से तलाक की अर्जी दायर की। अर्जी में युवक का आरोप था कि उसकी पत्नी उसके निष्ठा पर संदेह करती है। जिसके चलते उसको दाम्पत्य अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई करते हुए तलाक देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट के फैसले के खिलाफ यह शख्स हाईकोर्ट जा पहुंचा। यहां यह मामला जस्टिस आर. सुबइया और जस्टिस सी. सरवानन की बेंच के सामने आया। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पत्नी का पति को सेक्स से वंचित रखना क्रूरता की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने वकील की दलीलों को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि यह मामला उस दायरे में नहीं आता क्योंकि दोनों की शादी 1998 में हुई थी और दोनों के एक बच्ची भी है।
क्रूरता की संज्ञा नहीं दी जा सकती
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि शादी के 16 साल बाद दैहिक इच्छाओं की पूर्ति न होने को क्रूरता की संज्ञा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि यह समय साथ बदलाव और कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है। इसमें से बढ़ती उम्र भी एक फैक्टर है। इसलिए इसमें किसी को दोषी नहीं बनाया जा सकता।