गौरतलब है कि संजीव भट्ट वर्ष 1989 में हिरासत में हुई मौत के मामले के आरोपी हैं। यह घटना गुजरात के जामनगर में उनके अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कार्यकाल के दौरान हुई थी।
Attack on Mahie Gill: शूटिंग के दौरान जानलेवा हमले पर पुलिस ने चार लोगों को किया गिरफ्तार
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि यह मामला एक सांप्रदायिक दंगे से जुड़ा था जब संजीव भट्ट ( IPS Sanjiv Bhatt t ) ने 133 लोगों को हिरासत में लिया था और इनमें से एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मौत उसकी रिहाई के बाद अस्पताल में हुई थी।
भट्ट को बिना किसी स्वीकृत मंजूरी के गैरहाजिर रहने व आवंटित सरकारी वाहन के दुरुपयोग को लेकर 2011 में निलंबित कर दिया गया था। उन्हें 2015 में बर्खास्त कर दिया गया था।
Pitampura Fire: रिहायशी इमारत में लगी भीषण आग, 100 से ज्यादा लोगों को बचाया गया
इस मामले में संजीव भट्ट और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया था। जानकारी के अनुसार उस दौरान गुजरात सरकार ने संजीव पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन 2011 में राज्य सरकार ने उनके खिलाफ ट्रायल की इजाजत दी।
संजीव भट्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। गुजरात हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ मुकदमे के दौरान कुछ अतिरिक्त गवाहों को गवाही के लिए समन देने के उनके आग्रह से इनकार कर दिया था।
Ashok Gehlot लेंगे Rahul Gandhi की जगह! कांग्रेस अध्यक्ष का जल्द होगा ऐलान
गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि निचली अदालत ने 30 साल पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में पहले ही IPS Sanjiv Bhatt से जुड़े फैसले को 20 जून के लिए सुरक्षित रख लिया था।
सरहद पर BSF तो समुद्री लहरों के बीच NAVY के जवान दिखाएंगे योग का शौर्य
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी व न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की सर्वोच्च न्यायालय की अवकाश पीठ ने गुजरात सरकार व अभियोजन पक्ष की दलील को माना कि सभी गवाहों को पेश किया गया था, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया। अब दोबारा मुकदमे पर सुनवाई करना और कुछ नहीं है, बल्कि देर करने की रणनीति है।