‘सभ्य समाज में फांसी का स्थान नहीं’
एडवोकेट एसपी सिंह ने कोर्ट से कहा कि गैंगरेप के दोषी विनय, पवन और मुकेश की पृष्ठभूमि और सामाजिक आर्थिक हालात देखकर इनकी सजा कम की जाए। एक सभ्य समाज में फांसी जैसी सजा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। वकील ने कहा कि दुनिया के 115 देशों में मौत की सजा को खत्म कर दिया गया है।
एडवोकेट एसपी सिंह ने कोर्ट से कहा कि गैंगरेप के दोषी विनय, पवन और मुकेश की पृष्ठभूमि और सामाजिक आर्थिक हालात देखकर इनकी सजा कम की जाए। एक सभ्य समाज में फांसी जैसी सजा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। वकील ने कहा कि दुनिया के 115 देशों में मौत की सजा को खत्म कर दिया गया है।
दोषियों को कम से कम सजा हो: वकील
बलात्कारियों का बचाव करते हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील में कहा कि सजा-ए-मौत सिर्फ अपराधी को खत्म करती है, अपराध को नहीं। यह दुर्लभतम से दुर्लभ श्रेणी का अपराध नहीं है। लिहाजा इन तीनों की सजा जितनी हो सके कम कर दी जाए।
बलात्कारियों का बचाव करते हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील में कहा कि सजा-ए-मौत सिर्फ अपराधी को खत्म करती है, अपराध को नहीं। यह दुर्लभतम से दुर्लभ श्रेणी का अपराध नहीं है। लिहाजा इन तीनों की सजा जितनी हो सके कम कर दी जाए।
तीन दोषियों ने दायर की थी याचिका
बता दें कि निर्भया से गैंगरेप करने वाले चार दोषी जेल में हैं। कोर्ट में तीन दोषियों विनय, पवन और मुकेश की ओर से पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी। जिसपर आज सुनवाई हुई। दोषी अक्षय ने अभी याचिका दाखिल नहीं की है। बताया जा रहा है कि तीन हफ्तों में वो भी अपनी पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा।
बता दें कि निर्भया से गैंगरेप करने वाले चार दोषी जेल में हैं। कोर्ट में तीन दोषियों विनय, पवन और मुकेश की ओर से पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी। जिसपर आज सुनवाई हुई। दोषी अक्षय ने अभी याचिका दाखिल नहीं की है। बताया जा रहा है कि तीन हफ्तों में वो भी अपनी पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा।
16 दिसंबर 2012 की निर्भया से हुआ था गैंगरेप
राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 की रात चलती बस में घटी सामूहिक दुष्कर्म की घटना में दोषी ठहराए गए चार दुष्कर्मियों की फांसी पर 5 मई, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी मुहर लगाई थी।न्यायालय ने इसे जघन्यतम श्रेणी का मामला करार दिया। निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी ठहराया था, और फांसी की सजा सुनाई थी। उसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। उस वक्त के न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की सदस्यता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि जिस तरह के मामले में फांसी आवश्यक होती है, यह मामला बिल्कुल वैसा ही है। पीठ द्वारा फैसला सुनाए जाने के साथ ही पीड़िता के रिश्तेदारों और अन्य लोगों से खचाखच भरा अदालत कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 की रात चलती बस में घटी सामूहिक दुष्कर्म की घटना में दोषी ठहराए गए चार दुष्कर्मियों की फांसी पर 5 मई, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी मुहर लगाई थी।न्यायालय ने इसे जघन्यतम श्रेणी का मामला करार दिया। निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी ठहराया था, और फांसी की सजा सुनाई थी। उसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। उस वक्त के न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. भानुमति की सदस्यता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि जिस तरह के मामले में फांसी आवश्यक होती है, यह मामला बिल्कुल वैसा ही है। पीठ द्वारा फैसला सुनाए जाने के साथ ही पीड़िता के रिश्तेदारों और अन्य लोगों से खचाखच भरा अदालत कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।