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कभी खाने तक के लिए नहीं थे पैसे, न कभी माँ-बाप को देखा, देवधर ट्रॉफी में रहाणे को जिताएगा पप्पू

बचपन में ही पिता का साया सर से उठने के बाद खाने तक की कमी में गुजरे बचपन के दिन के बाद अब भारत की सी टीम में खेलने तक का सफर किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है ।

Oct 20, 2018 / 02:51 pm

Prabhanshu Ranjan

कभी पेट भरने के लिए करता था गेंदबाजी, नहीं मिला कभी माँ-बाप का प्यार, अब देवघर ट्रॉफी में करेगा कमाल पप्पू रॉय

नई दिल्ली । कभी बॉल डालने के बदले खाना पाने के प्रलोभन से शुरू हुआ क्रिकेट से रिश्ता कब जुनून बन गया यह बाएं हाथ के स्पिनर पप्पू रॉय भी नहीं जानते । जी हां सफलता को पाने लिए मेहनत तो हर कोई करता है लेकिन देवधर ट्रोफी में अंजिक्य रहाणे की अगुवाई वाली भारत की सी टीम में चुने गए पप्पू रॉय के लिए मेहनत और सफलता के अलग ही मायने हैं । बचपन में ही पिता का साया सर से उठने के बाद खाने तक की कमी में गुजरे बचपन के दिन के बाद अब भारत की सी टीम में खेलने तक का सफर किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है ।

नहीं मिला माँ का प्यार, ना बाप की गाली
पप्पू के बचपन के दिन बेहद खराब थे उन्होंने एजेंसी से बात करते हुए बताया ‘भैया लोग बुलाते थे और बोलते थे कि बॉल डालेगा तो खाना खिलाऊंगा और हर विकेट का 10 रुपये देते थे | उनके माता पिता बिहार के रहने वाले थे जो कमाई करने के लिये बंगाल आ गये थे। पापू ने अपने पिता जमादार राय और पार्वती देवी को तभी गंवा दिया था जबकि वह नवजात थे। उनके पिता ट्रक ड्राइवर थे और दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ जबकि उनकी मां लंबी बीमारी के बाद चल बसी थीं। पप्पू ने जब ‘मम्मी-पापा’ कहना भी शुरू नहीं किया था तब माँ और बाप का साया उनके सर से छिन गया ।

माँ- बाप के बाद चाचा ने संभाला
23 वर्षीय कोलकाता के इस लड़के की कहानी बड़ी मार्मिक है। पापू के माता-पिता बिहार के सारण जिले में छपरा से 41 किमी दूर स्थित खजूरी गांव के रहने वाले थे तथा काम के लिये कोलकाता आ गये थे। वह अपने माता पिता के बारे में सिर्फ इतनी ही जानकार रखते हैं। कोलकाता के पिकनिक गार्डन में किराये पर रहने वाले पापू ने कहा कि उनको कभी देखा नहीं, कभी गांव नहीं गया, मैंने उनके बारे में सिर्फ सुना है। पापू बताते है कि काश कि वे आज मुझे भारत सी की तरफ से खेलते हुए देखने के लिये जीवित होते। माता-पिता की मौत के बाद पापू के चाचा और चाची उनकी देखभाल करने लगे लेकिन जल्द ही उनके मजदूर चाचा भी चल बसे। इसके बाद इस 15 वर्षीय किशोर के लिये एक समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया।


खाने और ठिकाने के लिए करना पड़ा कड़ा संघर्ष
बचपन से ही भोजन और छत के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। पापू भुवनेश्वर से 100 किमी उत्तर पूर्व में स्थित जाजपुर आ क्र रहने लगे ।दोस्तों के कारण उन्हें वहां चाट और खाना मिल सका । फिर ओडिसा ही उनका ठिका बन गया। फिर 2015 में ओडिशा अंडर-15 टीम में उन्हें जगह मिली। तीन साल बाद पापू सीनियर टीम में पहुंच गये और उन्होंने ओडिशा की तरफ से लिस्ट ए के आठ मैचों में 14 विकेट झटके। वही से उन्होंने नाम बनाया और अब वह देवधर ट्रॉफी में खेलने के लिये उत्साहित हैं।

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