कमाल की बात यह है कि वर्तमान समय में टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री पहले ऐसे भारतीय बल्लेबाज हैं, जो निचले क्रम की बल्लेबाजी से प्रमोट होकर सलामी बल्लेबाज बनने के बाद काफी सफल रहे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज के रूप में की थी। अपने पहले टेस्ट मैच में वह सबसे अंतिम 10वें नंबर पर बल्लेबाजी करने आए थे। भारत के स्पिन गेंदबाज दिलीप दोषी के चोटिल होने पर उन्हें न्यूजीलैंड के बीच दौरे पर बतौर लेग स्पिनर बुलाया गया था। इस मैच में वह अंतिम नंबर पर बल्लेबाजी करने आए। इसके बाद वह बल्लेबाजी क्रम में प्रमोट होते गए। उन्हें पहली बार 1982 में इंग्लैंड के खिलाफ बतौर ओपनर मौका मिला। अपने पहले मैच में तो वह सफल नहीं हुए, लेकिन बाद में अच्छा प्रदर्शन कर टीम इंडिया के स्थायी सलामी बल्लेबाज बन गए। टेस्ट में बतौर उनका औसत 44.08 का है तो मध्यक्रम के बल्लेबाज के रूप में महज 33.28 का। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सलामी बल्लेबाज के रूप में कितने सफल रहे।
बतौर मध्यक्रम बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने टीम इंडिया में कदम रखा था और पहले ही टेस्ट मैच में शतक लगाकर काफी उम्मीदें जगाई थी। लेकिन इसके बाद वह मिडल ऑर्डर में लगातार फ्लॉप रहे। इस समय भारत की कोई स्थायी ओपनिंग जोड़ी नहीं थी। कोई भी इस स्थान पर सफल नहीं हो रहा था तो तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली ने वीरेंद्र सहवाग को मध्यक्रम से प्रमोट कर टॉप ऑर्डर पर बल्लेबाजी के लिए भेज दिया। इसके बाद तो जो हुआ इतिहास है। उन्होंने बतौर सलामी बल्लेबाज दो तिहरे शतक भी लगाए। वह तिहरा शतक लगाने वाले भारत के पहले बल्लेबाज भी हैं। सहवाग का औसत बतौर मध्यक्रम बल्लेबाज महज 37.9 का है। वहीं बतौर ओपनर 50 से भी ज्यादा का औसत है।