मन के भावों को सदा श्रेष्ठ बनाने का प्रयास जरुरी
अच्छे विचारों से कर्म क्षय होते हैं। बुरे विचार से अनंत कर्म का बंधन होता है। पापों को क्षय करने का कोई स्थान नहीं होता। देव स्थान पर बैठकर कर्म या पाप का बंध कर लेते हैं।
कोयंबटूर•Nov 16, 2019 / 12:10 pm•
Dilip
मन के भावों को सदा श्रेष्ठ बनाने का प्रयास जरुरी
कोयम्बत्तूर.अच्छे विचारों से कर्म क्षय होते हैं। बुरे विचार से अनंत कर्म का बंधन होता है। पापों को क्षय करने का कोई स्थान नहीं होता। देव स्थान पर बैठकर कर्म या पाप का बंध कर लेते हैं। वहीं अन्य स्थान पर कर्म पाप की निर्जरा कर सकते हैं। अर्थात हमारा मन पाप व पुण्य के बीच है। मन के भावों को सदा श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
यह विचार जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने कहे। वह यहां शंखेश्वर दर्शन टावर में गुरू मंदिर स्थापना के मौके पर धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बुरा बोलना, बुरा सुनना व बुरा देखना कर्म बंध का कारक है। उन्होंने कहा कि प्रभु का शुक्र अदा करना चाहिए कि उन्होंने देखने के लिए दो आंखे, सुनने के लिए दो कान व बोलने के लिए एक जुबान दी है।उन्हें देखना चाहिए जिनके पास देखने को आंखे नहीं है और बोलने के लिए जुबान नहीं है। मीठे वचन बोल कर दूरियां मिटाने व प्रेम बढ़ाने का प्रयास सदैव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि द्रोपदी के एक वचन ने भाई भाई के बीच महाभारत करवा दी। बैर का त्याग कर प्रेम बढ़ाना चाहिए। समभाव समता स्वीकार करने वाला व्यक्ति सदैव सम्मानीय होता है। विकट परिस्थितियां बन जाने पर समता का भाव खो देते हैं। ऐसे शब्द बोल देते हैं जिससे अपने ही पराए हो जाते हैं। वीर वाणी कहती है कि मन की समता व मानव का धैर्य उसकी विकट परिस्थिति का सबसे बड़ा समाधान है। धर्मसभा के बाद अहमदाबाद में देवलोकगमन हुए गच्छाधिपति जयघोष सूरी को सकल संघ व मुनि भगवंतों ने भावाजंलि दी। राजस्थान मूर्ति पूजक संघ की ओर से ओबानी परिवार का बहुमान किया गया।
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