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Nagar parishad Election: शाम को चुना सभापति, सुबह हुई तो दूसरा ही सभापति मिला

Nagar parishad Election: सारा दारोमदार निर्दलीयों ( Independent ) पर आ जाता था। फिर उसमें उसी का पलड़ा भारी हो जाता था, जिधर निर्दलीय झुक जाते थे।

चूरूNov 11, 2019 / 05:28 pm

Brijesh Singh

Nagar parishad Election: शाम को चुना सभापति, सुबह हुई तो दूसरा ही सभापति मिला

Nagar parishad Election: शाम को चुना सभापति, सुबह हुई तो दूसरा ही सभापति मिला

चूरू। नगर परिषद चूरू ( Churu Nagar Parishad ) में जिधर देखो, उधर ही अलग कहानी बिखरी पड़ी नजर आती है। इसी तरह का एक किस्सा यहां पाला बदल के खेल का भी रहा है, जिसमें आज शाम को सभापति का चुनाव कर बाकायदा ऐलान कर दिया जाता था और रात भर में ऐसी सियासी खिचड़ी पकती कि दूसरे दिन नया सभापति ( Chairman ) पद संभालने पहुंच रहा होता था। आंकड़ों और इतिहास के हवाले से देखें, तो एक तथ्य यह भी सामने आता है कि यहां पर अधिकांशत: बोर्ड गठन में निर्दलीयों की भूमिका बेहद अहम रही है। दलीय आधार पर जोर लगाने के बावजूद कई बार ऐसा देखा गया कि भाजपा-कांग्रेस ( BJP- CONG ) जैसे जमीनी आधार वाले दलों को 60 सदस्यीय बोर्ड में बहुमत नहीं मिल पाता। नतीजा, सारा दारोमदार निर्दलीयों पर आ जाता था। फिर उसमें उसी का पलड़ा भारी हो जाता था, जिधर निर्दलीय झुक जाते थे। माना जा रहा है कि इस बार भी निर्दलीयों ( Independent ) की भूमिका बोर्ड गठन में अहम हो सकती है।

बात उन दिनों की है…
मीसाबंदी बुजुर्ग पत्रकार 85 वर्षीय माधव शर्मा बुदबुदाती आवाज में चूरू नगर परिषद/नगर पालिका में राजनीतिक उठापटक के किस्सों को बयां करते हैं। सन 1971 के पहले के दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि उन दिनों चूरू नगर परिषद का दायरा बहुत छोटा हुआ करता था। वार्डों की संख्या भी 8 के आसपास ही होती थी। हर वार्ड में दो दो सदस्य होते थे। यानी कुल १६ सदस्य होते थे। पार्टियों का उतना दखल नहीं होता था, तो अधिकांशत: निर्दलीय ( Independent ) पार्षद चुने जाते थे। बात जब सभापति चयन की होती थी, तो निर्धारित समय पर पार्षद सभापति का चुनाव भी कर लेते थे। लेकिन कई बार ऐसा देखा गया, जिसे पार्षदों () ने अपना सभापति चुना था, अगली सुबह होते-होते यानी रातो-रात चली राजनीतिक उठापटक में वह सभापति हट चुका होता था और उसकी जगह नया सभापति चुना जा चुका होता था।

वार्ड 55 से चुने गए कई सभापति
नगर परिषद के चुनावों का एक रोचक पहलू यह भी रहा है कि चुने गए सभापतियों में से कईयों का अब के वार्ड 55 से नाता जरूर रहा है। नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन 76 वर्षीय रामगोपाल बहड़ की मानें, तो साल 1975 से पहले आज का वार्ड 55 वार्ड चार के नाम से जाना जाता था। उसके बाद नए परिसीमन में यह वार्ड ३८ हुआ और फिर वार्ड 41 के नाम से जाना गया। पिछले परिसीमन में वार्ड 41 से बदल कर यह वार्ड नंबर 55 हुआ। बताते हैं कि पूर्व रामगोपाल बहड़ रहे हों, गौरीशंकर हों, रमाकांत ओझा और गोविंद महनसरिया अथवा पूर्णानंद व्यास और सूरजमल जोशी जैसे कई सभापतियों का इस वार्ड से नाता रहा है।

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