जहां स्थानीय भावना के अनुसार भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ मूंछों सहित विराजित है। इतिहासकार महावीर पुरोहित के अनुसार 292 साल पुराने इस मंदिर को संवत 1788 में सीकर के राजा शिवसिंह ने फतेहपुर पर कब्जा करने के बाद बनवाया था। संभवतया सालासर बालाजी व स्थानीय लोगों के वेश व मंशा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मां सीता के साथ मूंछ वाले राम व लक्ष्मण की मूर्तियां प्रतिष्ठित करवाई थी। पुरातत्ववेत्ता गणेश बेरवाल का मानना है कि भगवान राम का स्थानीयकरण करने के लिहाज से मंदिर में मूंछो वाले देवता विराजित किए गए हैं।
दुर्लभ है मूंछो वाले राम
फतेहपुर के मूंछो वाले भगवान राम की मूर्ति बेहद दुर्लभ है। यहां के अलावा प्रदेश में झुंझुनूं के चिड़ावा व उदयपुर के अलावा मध्यप्रदेश के इंदौर, खांडवा तथा ओडिशा के ओडागांव में ही मूंछो वाले राम की मूर्ति बताई जाती है। रघुनाथजी का ये मंदिर रामानंद संप्रदाय की झालरिया पीठ के अधीन है।
दौलत खां ने बनाया सीतारामजी का मंदिर
गढ़ के बाहर सीतारामजी का मंदिर भी है। मान्यता के अनुसार उसे नवाब दौलत खां ने अपनी हिंदू रानियों के लिए बनाया था। इतिहासकार प्रदीप पारीक ने बताया कि गढ़ से मंदिर और बावड़ी के लिए नवाब ने अलग सुरंग भी बनवाई थी। जिसके जरिए ही रानियां बावड़ी में नहाने आती और मंदिर में दर्शन के बाद गढ़ में लौटती थी।
11 वें नवाब को हराकर किया कब्जा
इतिहासकार पुरोहित के अनुसार फतेहपुर की स्थापना संवत 1508 में नवाब फतेह खां ने की थी। 1788 तक यहां 11 नवाब हुए। आखिरी नवाब सरदार खां व उनके बेटे कामयाब खां को हराकर राजा शिवसिंह ने फतेहपुर पर कब्जा किया था। इसके बाद वहां रघुनाथजी सहित कई मंदिर बने।
बाबर से भी जुड़ा है इतिहास
फतेहपुर गढ़ के मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द व चमत्कार के साथ मुगल आक्रांता बाबर से भी जुड़े हैं। इतिहासकार प्रदीप पारीक ने बताया कि जान कवि की कयाम खां रासो के अनुसार नवाब फतेह खां के समय भी बाबर फकीर के भेष में जासूसी के लिए फतेहपुर आया था। अपने साथ लाए शेर के भोजन के रूप में उसने गढ़ की गाय की मांग की थी। इस पर फतेह खां ने पहले तो गाय देने से मना कर दिया। बाद में कहा कि शेर उसे खा सके तो खा ले। पर जब गाय को शेर के सामने लाया गया तो शेर उसके सामने नतमस्तक हो गया।