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लाखों खर्च फिर भी नहीं मिली नई जमीन
जसवंतगढ़ ग्राम पंचायत की बीहड़ में वर्ष 2017 में प्रदेश सरकार ने 281 हेक्टेयर भूमि काले हिरणों की शिफ्टिंग के लिए अवाप्त कर वन विभाग को आवंटित कर दी थी। इसके बाद आरपीएसी योजना में 15 लाख का बजट खर्च करके 273 हेक्टेयर भूमि के चारों तरफ करीब छह किमी लम्बी और चार फीट ऊंची खाई बनवा दी गई है। बीहड़ में पानी रोकने के लिए मृदा एवं जल संरक्षण के तहत ट्रेंच बनाकर(क्यारियां) घास की बिजाई की गई है। शिफ्टिंग से पहले हरिणों के लिए पानी का एक तालाब बनाया जाना था। मगर, ये काम भी नहीं हो पाया। इसके बाद राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर बीते साल प्रदेश सरकार ने पौने दो करोड़ का बजट स्वीकृत किया है। जिसमें से वन विभाग करीब 45 लाख खर्च कर यहां पर फिर से ग्रासलैंड तैयार कर रहा है।
शिफ्टिंग योजना बन रही 2009 से
तालछापर से काले हिरणों को जसवंतगढ शिफ्ट करने की योजना 2009 से बनाई जा रही है। उस साल आए तुफान में हजारों की संख्या में काले हिरणों की मौत हो गई थी। इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से डब्ल्यू डब्ल्यू आइआइ ने जांच कर एक रिपोर्ट सरकार को भेजी, जिसमें हिरणों को बचाने के लिए शिफ्टिंग, इनका बधियाकरण या फिर क्षेत्र बढाने का प्रस्ताव दिया था। जिसमें से सरकार ने शिफ्टिंग पर अपनी सहमति दी थी। मगर, इसके बाद योजना ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्देशों पर 2022 को निगरानी कमेटी का गठन कर सरकार को इन्हें शिफ्ट करने के निर्देश दिए गए।
बढ़ता कुनबा बन रहा खतरा
काले हिरणों की बढती जनसंख्या के कारण तालछापर अभ्यारण्य में इन हिरणों के बीच अंतरजातीय प्रतिस्पर्धा के तीव्र होने की पूर्ण संभावना है जो कि किसी प्रजाति विशेष के लिए अत्यंत हानिकारक साबित हो सकती है। प्रबंधन की दृष्टि से एक हिरण प्रति हेक्टेयर क्षेत्र की आवश्यकता होती है, जिसमे इन हिरणों की सभी आवश्यकताएं जैसे भोजन, स्वच्छंद विचरण, प्रजनन इत्यादि सम्मिलित है।
अफ्रीकन बोमा पद्धति भी नहीं कारगर
वन्यजीव विशेषज्ञों ने बताया कि तालछापर अभयारण्य से काले हिरणों की शिफ्टिंग के लिए अफ्रीकन बोमा तकनीक अपनाई जा सकती है।
जिसमें की छोटे – छोटे बाड़े बना कर इन हिरणों को जसवंतगढ़ तक ले जाया जाए। मगर, यहां पर इसमें भी सबसे बड़ी समस्या ये है कि तालछापर से जसवंतगढ़ की सीधी दूरी करीब 15 से 18 किमी के बीच है। इस दूरी के बीच में एक मेगा हाइवे, एक राष्ट्रीय राजमार्ग व एक स्टेट हाइवे पड़ता है। इसके अलावा इस दूरी में मौजूद खेतों में किसानों ने खेतों की सुरक्षा के लिए चेन लिंक फेंसिंग भी कर रखी है, जिसे वे खोलने को तैयार नही है।
जानें क्या है बोमा पद्धति
विशेषज्ञों के मुताबिक अफ्रीकन बोमा तकनीक में छोटे – छोटे बाड़े एक के बाद एक इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वन्यजीवों को घास डाल कर एक ही दिशा में चलने हेतु प्रेरित किया जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है। मगर, यहां पर कई तकनीकी खामियों के चलते ये पद्धति भी कारगर नहीं है। इसके अलावा सीधे तौर पर बड़े कंटेनर्स को प्राकृतिक सजावट के साथ घास डालकर हिरणों के झुंड को को उसमें बंद कर बड़े वाहनों के जरिए सडक़ मार्ग से हिरणों को जसवंतगढ़ में शिफ्ट किया जाए। मगर, इसमें भी जोखिम है कि कमजोर ह्रदय वाले हिरणों की मौत होने की संभावना रहती है।
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इन्हें ट्रेंकुलाज्ड नहीं किया जा सकता
वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो काले हिरणों को तालछापर से जसवंतगढ़ शिफ्ट करना एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए गंभीरता के साथ तैयारियां की जानी आवश्यक है। काला हिरण मांसाहारी वन्यजीवों की तरह ताकतवर नही होता। यही वजह है कि इन्हें ट्रेंकुलाइज्डभी नहीं किया जा सकता। ट्रेंकुलाइजेशन की प्रक्रिया में काले हिरण की मौत की 99 प्रतिशत संभावना रहती है।