भारत की राष्ट्रीय मिठाई जलेबी दुनियाभर में अपनी विशेष पहचान रखती है। मीठे व्यंजन बनाने में थळी अंचल की अपनी विशेषता रही है और मिष्ठान बनाने वाले न केवल चूरू में बल्कि महानगरों में मिठाई बनाने का काम शुरू कर राजस्थान की मिठाइयों को देश में प्रसिद्धि दिलाई है।
इनमें है चूरू का थेपड़ा घेवर जो देश विदेश में अपनी खास पहचान रखता है। चूरू का थेपड़ा घेवर मौसम या पर्व विशेष का मिष्ठान माना जाता है। इसलिए मकर संक्रांति तक थेपड़ा घेवर की निरंतर मांग रहती है लेकिन बाद में इसकी जगह जलेबी ले लेती है।
दो प्रकार के बनते हैं घेवर
चूरू में भले ही दो प्रकार के घेवर बनते हैं, लेकिन इसमें लजीज थेपड़ा घेवर को माना जाता है। जालीदार घेवर बनते हैं लेकिन यह गर्म नहीं होती। हालांकि जालीदार घेवर में हलवाइयों ने नवाचार कर इसे मलाईदार घेवर भी बनाया है, फिर भी ज्यादा चलन में थेपड़ा घेवर ही रहती है। जालीदार घेवर ठंडी होती है या फिर ग्राहक हलवाई मांग बनी-बनाई या फिर उसकी मांग पर उसी के सामने चाशनी में डूबोकर तैयार घेवर की बिक्री करते हैं, जबकि थेपड़ा घेवर गर्म की ज्यादा मांग रहती है।प्रत्येक मिठाई की दुकान में बनते हैं घेवर
दिसंबर माह की मज सर्दी से चूरू की प्रत्येक मिठाई की दुकानों पर घेवर बनने शुरू हो गए है और अब मकर संक्रांति तक थेपड़ा और जालीदार घेवर बनने का क्रम जारी रहेगा। शहर में कई मिष्ठान की दुकानों में पर घेवर बनाने के लिए पांच दस हलवाई एक साथ काम कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर घेवर थेपड़ा बनाई जा रही है जिसके बनाने का क्रम दिनभर जारी रहता है। ग्राहकों को गर्म थेपड़ा घेवर चाहिए इसलिए हलवाई ग्राहकों को इसकी आपूर्ति करते हैं।प्रवासियों की मांग
मिष्ठान बनाने में प्रसिद्ध रहे कई हलवाइयों के परिवार के लोग आज भी विरासत में मिष्ठान के कारोबार में लगे हुए है। इन परिवार के हलवाइयों के यहां बन रही थेपड़ा घेवर की सर्दी के मौसम में ज्यादा मांग रहती है। हलवाइयों के अनुसार प्रवासी लोगों में इसकी खूब मांग रहती है और उनके मिले आर्डर के अनुसार थेपड़ा घेवर की पूर्ति की जा रही है। उनका कहना है कि सर्दी के मौसम में यहां के लोगों को घेवर का इंतजार रहता है। सुबह और शाम इसका सेवन ज्यादा होता है इसलिए लोग रात्रि का इंतजार करते हुए शाम को गर्म घेवर अपने घर ले जाते हैं। इन दिनों शहरभर की हलवाइयों की दुकानों पर बन रहे घेवर इन दिनों खूब चल रहे हैं।
लोकाचार में घेवर रखता है महत्व
मकर संक्रांति पर हर घर का मुख्य मिष्ठान होता है घेवर। घरों की छतों पर चढ़े युवा घेवर के रसास्वादन के साथ पतंगबाजी करते हैं। मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू और घेवर केवल बतौर व्यंजन ही नहीं बल्कि इसका यहां के लोकाचार में बड़ा महत्व है। हर घर में महिलाएं मकर संक्रांति की पूजा कर एक दूसरे को घेवर भेंट करती है। बहुएं अपनी सास के पांव धोक कर दक्षिणा के साथ घेवर देकर आशीर्वाद प्राप्त करती है। भाभी घेवर देकर देवर को जगाने सहित अनेक पंरपराओं का निर्वहन करती है जिसमें समान स्वरूप घेवर ही भेंट में दी जाती है। कहानी सुनने वाली मातृशक्ति घेवर और तिल के लड्डू का भोग लगाकर दान पुण्य करती है।
गुलाब जामुन पर भारी थेपड़ा घेवर
गुलाब जामुन को मिठाई का राजा कहा जाता है, लेकिन सर्दी के मौसम में थेपड़ा घेवर इस पर भारी पड़ती है। कड़ाके की सर्दी में चूरू का भारी भरकम एक थेपड़ा घेवर इतना लजीज होता है कि लोग सर्द मौसम में केवल इसे ही पंसद करते हैं। एक समय वह भी था सर्दी के मौसम में हलवाई सर्दी के मौसम में अस्थाई दुकानें लगाकर मकर संक्रांति तक केवल थेपड़ा घेवर बनाकर लोगों की मांग की आपूर्ति किया करते थे। अब हलवाइयों ने दुकानें या फिर मिष्ठान के शोरूम, रेस्टोरेंट या फिर होटल खोल लिए हैं। इसलिए, इन्हीं के यहां सर्दियों में विशेष रूप से थेपड़ा घेवर बनाई जाती है जहां दिनभर हलवाई थेपड़ा घेवर बनाते हैं और गर्मागर्म घेवर देख लोग इसकी खरीद करने के लिए आतुर रहते हैं।