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चूरू

दिन में एक प्रहर करणी माता आती है चूरू के इस गांव में

चूरू. ब्याह के दौरान पौत्री सांपू काफी दुखी थी, मन में टीस थी कि ससुराल दूर होने से माता से मिलना कम होगा।

चूरूOct 03, 2019 / 12:15 pm

Madhusudan Sharma

दिन में एक प्रहर करणी माता आती है चूरू के इस गांव में

दिन में एक प्रहर करणी माता आती है चूरू के इस गांव में


चूरू. जिले के रतनगढ़ कस्बे से करीब बीस किलोमीटर दूर गांव छोटडिय़ा स्थित करणी माता मंदिर में मां करणी माता की विशेष कृपा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस छोटे से गांव में माता करणी की छोटी बहन गुलाबो बाईसा की पौत्री सांपू का विवाह जीवराज सिंह के साथ हुआ था। ब्याह के दौरान पौत्री सांपू काफी दुखी थी, मन में टीस थी कि ससुराल दूर होने से माता से मिलना कम होगा।
राउप्रावि के हैड मास्टर नारायणराम बताते हंै कि पौराणिक मान्यता है कि माता करणी ने पौत्री को आठ में से एक प्रहर छोटडिय़ा में रहने का वादा किया था। जबकि सात प्रहर देशनोक में रहने के लिए कहा था। इसी कारण गांव को दूसरा देशनोक भी कहा जाता है। यहां नवरात्रा पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

करनेजड़ी वृक्ष के नीचे किया विश्राम
गांव में खेजड़ी का वृक्ष है, जहां पर करणी माता ने पहली बार पौत्री सांपू से मिलने पर विश्राम किया था। यह वृक्ष मंदिर से सौ मीटर दूरी पर पश्चिम दिशा में है। कहा जाता है कि बादशाह हूमायुं के छोटे भाई कामरान भटनेर युद्ध में बीकानेर के तत्कालीन शासक जैत सिंह से युद्ध में हार गया था। उसने इसी मंदिर में जान बचाने की प्रार्थना की थी। उसने अपना मुकुट (किरण) माता के चरणों में रख दिया। कुछ देर में मुकुट जमीन में धंस गया, वहां पर खेजड़ी का वृक्ष प्रकट हो गया, इसलिए इसे किरणीया वृक्ष कहते हैं।

देशनोक की जात छोटडिया में
मान्यता है कि श्रद्धालुओं की ओर से किसी मनोकामना के पूर्ण होने पर या किसी कारण से देशनोक के लिए बोली गई जात छोटडिया के मंदिर में पूरी हो जाती है।लेकिन छोटडिया की जात देने यही आना पड़ता है।पौराणिक कहावत है कि ये नियम स्वयं माता करणी ने ही बनाया था।बीकानेर व छोटडिया मंदिर की बनावट एक सी है।करणी माता के जन्म दिन पर देशनोक जैसी ही शोभायात्रा निकाली जाती है।

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