जहां गर्मी के मौसम में सूर्य की तीखी किरणें आम आदमी को बेहाल कर देती हैं, तो वहीं सर्दियों के मौसम में यहां बाहर रखा पानी बर्फ बन जाता है। कई बार यहां रात का तापमान माइनस में दर्ज किया गया।
रेतीले टीले हैं बड़ा कारण
साल 2019 में चूरू में अधिकतम तापमान अपना रेकॉर्ड तोड़ते हुए 50.8 डिग्री दर्ज किया गया था। वहीं 30 जनवरी 2006 को चूरू का न्यूनतम तापमान माइनस 4.6 डिग्री तक पहुंच गया था। बता दें कि मई-जून में भीषण गर्मी के पीछे चूरू की भौगोलिक स्थिति काफी ज्यादा जिम्मेदार है। दरअसल चूरू जिला कर्क रेखा के नजदीक है। वहीं चूरू में रेत के टीले काफी ज्यादा पाए जाते हैं। ऐसे में गर्मी के मौसम में यह टीले काफी जल्दी गर्म हो जाते हैं। वहीं सर्दी में बहुत जल्दी ठंडे। ऐसे में सर्दियों में कई बार यहां खेतों में बर्फ की चादर बिछ जाती है।
काफी बारीक हैं मिट्टी के कण
चूरू में रेतीली मिट्टी के कण काफी बारीक होते हैं। ये कण जैसलमेर-बाड़मेर जैसे इलाकों की मिट्टी के कणों से भी काफी बारीक होते हैं। इसलिए ये जल्दी गर्म और ठंडे हो जाते हैं। वहीं पाकिस्तानी बॉर्डर से सटे इलाकों से आने वाली गर्म हवा चूरू के तापमान को बढ़ा देती है।कम बनते हैं बादल
कर्क रेखा के नजदीक होने के चलते चूरू में गर्मी और सर्दी के मौसम में अधिकांश समय हवा ऊपर से नीचे की ओर आती है। ऐसी स्थिति में बादल कम बनते हैं। इसलिए गर्मियों में सूरज की तीखी किरणें चूरू को बेहाल कर देती हैं। वहीं सर्दियों के मौसम में भी रात को बादल नहीं होने के चलते गर्मी का रेडिएशन फिर से अंतरिक्ष में चला जाता है। ऐसे में यहां काफी ज्यादा सर्दी महसूस होती है।
उत्तर से आती हैं बर्फीली हवाएं
चूरू में जंगल या वनस्पतियां काफी कम हैं। यहां वनस्पति का आवरण केवल एक फीसदी है। यह भी भीषण ठंड और भीषण गर्मी के लिए जिम्मेदार है। सर्दियों के मौसम में चूरू में उत्तर पश्चिमी हवाएं चलती हैं। यह वीडियो भी देखें यह हवाएं अपने साथ ठंडक लेकर आती हैं, जिससे मौसम और भी सर्द हो जाता है। सर्दियों के मौसम में उत्तरी इलाकों में बर्फबारी होती है। यही हवाएं पश्चिम में चूरू में प्रवेश करती हैं, ऐसे में सर्दियों में यहां बर्फ तक जम जाती है।