चूरू

आशंका: स्वच्छता सर्वे-2021 का मिशन भी खटाई में!

स्वस्छता सर्वे में चूरू शहर ने तकरीबन 35 फीसदी अंकों के साथ 252 वां और राज्य में 12वां स्थान हासिल कर भले ही अपनी इज्जत बचा ली हो, लेकिन जो हालात हैं, उससे साल 2021 के सर्वे और तब तक शहर के जनमानस की स्थिति पर कचरा निस्तारण का संकट मंडरा रहा है।

चूरूAug 23, 2020 / 07:05 am

Madhusudan Sharma

आशंका: स्वच्छता सर्वे-2021 का मिशन भी खटाई में!

चूरू. स्वस्छता सर्वे में चूरू शहर ने तकरीबन 35 फीसदी अंकों के साथ 252 वां और राज्य में 12वां स्थान हासिल कर भले ही अपनी इज्जत बचा ली हो, लेकिन जो हालात हैं, उससे साल 2021 के सर्वे और तब तक शहर के जनमानस की स्थिति पर कचरा निस्तारण का संकट मंडरा रहा है। गौरतलब है कि चूरू शहर को स्वच्छता सर्वे में 6 हजार अंकों में 2103.23 अंक हासिल हुआ है। यह कुल 35 फीसदी बैठता है। ओडीएफ यानी खुले में शौचमुक्त और डायरेक्ट ऑब्जरवेशन यानी (सीधे भ्रमण करके हालात का आंकलन) को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के फ्रंट पर चूरू शहर सफाई के मापदंड पर औंधे मुंह गिरा है। हालांकि, अगर इन सबको पीछे छोड़ अगर हम आगे की ओर देखें, तो स्थिति और विकट नजर आती है। दरअसल, वित्तीय वर्ष के हिसाब से तय होने वाले स्वच्छता सर्वे की अवधि में से लगभग आधा समय निकलने को है और हमारी स्थिति यह है कि चूरू कचरा निस्तारण की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत यानी डंपिंग यार्ड तक अपना कचरा पहुंचा ही नहीं पा रहा है। इसका कारण किसानों का विरोध है, जो पिछले करीब छह महीनों से राजगढ़ रोड हाडा फैक्ट्री स्थित कचरागाह में कचरे की राह में ‘ब्रेकरÓ बने रहे हैं। किसानों और प्रशासन के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन यह मसला अब तक कोई ठोस निष्कर्ष हासिल नहीं कर पाया है। नतीजे में रोज का करीब 6 0 टन कचरा यहां-वहां निस्तारित करना पड़ रहा है और इससे कचरा निस्तारण की योजना को पलीता लगता दिखाई दे रहा है।
फरवरी मध्य से उठा है मसला
दरअसल, किसानों की समस्या डंपिंग यार्ड से कचरा उड़-उड़कर उनके खेतों और गांवों तक जाने को लेकर है। किसानों का आरोप है कि इस डंपिंग यार्ड से आसपास के तीन-चार किमी के दायरे में स्थित आबादी के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। साथ ही खेतों का उपजाऊपन भी नष्ट हो रहा है, क्योंकि खेत डंपिंग यार्ड से उड़ कर आने वाले प्लास्टिक और दूसरी तरह के कचरे से अटे पड़े होते हैं। किसानों ने इसे लेकर फरवरी में पहली बार जोरदार और प्रभावशाली तरीके से अपनी आपत्ति दर्ज कराई। डंपिंग यार्ड पर कचरा गिराने से मना करते हुए धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसी दौरान कोरोना काल शुरू हो गया। मामला दब गया। तीन-चार अप्रेल को ग्रीन जोन में आने के बाद नगर परिषद ने फिर से कोशिश की कि कचरा गाडिय़ों को डंपिंग यार्ड भेजा जाए, लेकिन फिर वही हालात बन गए।
…तो होगा समस्या समाधान
नगर परिषद के जिम्मेदारों का मानना है कि किसानों की आशंका निराधार है। परिषद ने अब डंपिंग यार्ड के आसपास ऊंची दीवार बना दी है। अब कोशिश यह है कि उस जगह पर एमआरएफ (मेटेरियर रिकवरी फैसिलिटी) संयंत्र स्थापित किया जाए। ताकि कचरे का वर्गीकरण करने की प्रक्रिया यहीं हो।
अंबिकापुर का उदाहरण
नगर परिषद के एईएन और कचरा निस्तारण में विशेष रूप से दक्ष माने जाने वाले अच्युत द्विवेदी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर चूरू से भी कम आबादी का और अपेक्षाकृत कम संपन्न इलाका है। फिर भी वह अगर स्वच्छता सर्वे में अपनी कैटेगरी में अव्वल रहा है, तो इसका कारण है कि वह पेन की रीफिल तक को अलग करने की व्यवस्था बना चुका है। उसके यहां एमआरएफ फैसिलिटी मौजूद है। कचरागाह में कचरा वर्गीकरण का काम होता है। इसके बाद तदनुसार कचरा निस्तारण के लिए भेजा जाता है।
रोजगार से भी जोड़ सकते हैं
अच्युत कहते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया को हम रोजगार से भी जोड़ सकते हैं। अंबिकापुर में प्लास्टिक कचरा और अन्य कचरे के निस्तारण के लिए बाकायदा कबाडिय़ों से संपर्क कर उनकी मदद ली गई। इस पूरी प्रक्रिया को रोजगार से जोड़ा गया। संसाधन कम थे, तो गरीबों को कचरा वर्गीकरण में लगा दिया। वर्गीकृत कचरे में से ठोस और कंपोस्ट बनाने युक्त कचरा छोड़ कर री-साइकिल योग्य कचरा उन्हीं के जरिए निस्तारित (बिकवा कर) करवाया गया। यह प्रक्रिया अपने यहां चूरू में भी अपनाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए आम जनता का सहयोग जरूरी है। एमआरएफ की स्थापना उसका पहला चरण है। लोग कचरे को कम से कम डंपिंग यार्ड तक पहुंचने तो दें। कचरा वहां पहुंचेगा, तो हम उसके वर्गीकरण के साथही इस पूरी प्रक्रिया को रोजगार से जोडऩे के बारे में भी सोच सकते हैं। फिलहाल, तो हमारे पास कोई डाटा ही उपलब्ध नहीं है, जिससे हम किसी भी योजना पर काम कर सकें। क्योंकि कचरा डंपिंग यार्ड तक तो पहुंच ही नहीं पा रहा है।
क्या है कचरा निस्तारण का गणित
जानकारी के मुताबिक, किसी भी शहर या राज्य में कचरा निस्तारण का मोटा गणित यह होता है कि इसमें कुल कचरे का करीब 45 से 50 फीसदी ऐसा कचरा होता है, जो कंपोस्ट प्लांट में जाना चाहिए। यानी कि उसको खाद के रूप में उपयोग में भी लाया जा सकता है। चूरू के संदर्भ में देखें, तो यहां लगभग 6 0 टन रोज का कचरा निकलता है। ऐसे में करीब 25 टन कचरा अपने आप ही कंपोस्ट प्लांट तक पहुंचाया जा सकता है। बचे 35 टन कचरे में प्लास्टिक और री-साइकिल होने योग्य कचरा भी बड़ी मात्रा में होता है। प्लास्टिक कचरे को फैक्ट्रियों के ईंधन में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए कचरे का उद्गम स्थल और निर्गम स्थल पर सेग्रीगेशन (वर्गीकरण) जरूरी है।


डीएलबी टीम जा चुकी है अंबिकापुर
जानकारी के मुताबिक, स्वायत्त शासन विभाग जयपुर निदेशालय की टीम पिछले सर्वे में दूसरे स्थान पर आई और इस साल अव्वल रही अंबिकापुर का दौरा कर चुकी है। अध्ययन रिपोर्ट से उसने चूरू सहित पूरे राज्य की इकाइयों को अवगत कराया, लेकिन अफसोस कि उस पर अनेकानेक कारणों से पूणत: अमल नहीं हो पा रहा।

एक नजर : स्वच्छता सर्वे 2020 की स्थिति
सर्वे में प्रथम सौ स्थान पर आए शहरों की स्थिति को देखें, तो ओवरऑल प्रथम रहने वाले शहर इंदौर ने तकरीबन 93 फीसदी अंक हासिल किए हैं, जबकि चूरू 35 फीसदी अंकों के साथ अपनी कैटेगरी में 252वें नंबर पर है। इस कैटेगरी में अव्वल अंबिकापुर के 60 फीसदी अंक हैं। बिंदुवार देखें, तो मोटे तौर पर चार बिंदुओं पर अंक दिए गए हैं। डायरेक्ट ऑब्जरवेशन में चूरू को तकरीबन 40 फीसदी अंक मिले हैं, जबकि सबसे महत्वपूर्ण बिंदु कचरा निस्तारण में मात्र 15 फीसदी अंक मिले हैं। गारबेज फ्री सिटी जैसे अहम बिंदु पर तो शून्य स्कोर रहा है। ओडीएफ में 200/200 अंक मिले हैं, जबकि सिटीजन फीडबैक के एक हिस्से में 1000 अंकों ने ओवरऑल फिसड्डी रहने से बचा लिया।

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