चित्तौड़गढ़

राजस्थान के इस भोलेनाथ मंदिर में थी एक रहस्यमयी गुफा, मंदिर में नहीं मिलता था आम लोगों को प्रवेश; जानें क्यों

Gupteshwar Mahadev Temple : भगवान भोलेनाथ अक्सर दुर्गम पहाड़ों में ही बिराजते है।

चित्तौड़गढ़Oct 23, 2024 / 03:12 pm

Supriya Rani

भीलवाड़ा. भीलवाड़ा के बड़ीसादड़ी में भगवान नगर के पहाड़ों के मध्य एक गुफा के मुख्य द्वार पर भगवान भोलेनाथ बिराजते हैं। इस स्थान की महिमा अपरंपार है। झाला राजवंश ने ललित सागर बांध के ऊपरी दिशा में पहाड़ों के मध्य एक प्राकृतिक गुफा के मुख्य द्वार पर 16वीं सदी में भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित कर एक साथ दो उद्देश्य पूर्ण किए।

मंदिर में नहीं मिलता था आम लोगों को प्रवेश

मुगलों के आतंक व मेवाड़ के प्रमुख ठिकाना होने के चलते रणनीति के तहत राजमहल व मुख्य बस्ती से दूर पहाड़ों में यह आध्यात्मिक केंद्र बनाया जहां राज परिवार के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति की पहुंच नहीं थी। वे यहां शांत वातावरण में अभिषेक करने आते और सुकून महसूस करते थे। महाराज सामंत सिंह ने यहां पूजा करने के लिए पवित्रीकरण के लिए इसी स्थान से 300 मीटर ऊंचाई पर एक धौत का निर्माण कराया। वहां वे स्नान करते और मवेशियों के लिए पीने का जल एकत्रित हो जाता था, जिससे जंगल में चरने वाले मवेशी भी आसानी से प्यास बुझाते थे। बाद में इस धौत को पिकनिक स्थल भी बना दिया गया। इस गुफा के गुप्त रास्ते की खोज खबर भी ले लेते थे क्योंकि मेवाड़ के शासकों को सदैव मुगलिया हमलों से सावधान रहना पड़ता था।

गुफा में होकर सीधे प्रतापगढ़ जाने का गुप्त रास्ता

इस गुफा में होकर सीधे प्रतापगढ़ जाने का गुप्त रास्ता था। इसी गुप्त रास्ते कांठल क्षेत्र व आगे मालवा तक की खबर लेकर दूत आया – जाया करते थे। दुश्मन इस रास्ते को जान नहीं पाए इसके लिए द्वार पर भगवान को बिराजित कर दिया ताकि किसी को भी शक नही हो और पूजा – अर्चना भी हो जाए।

यहां 500 से अधिक पौधे लगाए गए जो अब पेड़ बन गए हैं

राजा – रजवाड़ों के बाद यह स्थान निर्झन वन होने के चलते वीरान होकर रह गया लेकिन पूजा – पाठ बंद नही हुआ। राजपुरोहित व अन्य लोग पूजा – अर्चना कर चले जाते, उसके बाद यह अवांछित लोगों का अड्डा बन गया। लंबे समय तक उपेक्षित रहने वाले इस मंदिर में पचास वर्ष तक कृपाशंकर आमेटा अपने घर से पवित्र जल की बाल्टी भरकर ले जाते और जलाभिषेक करते रहे। उनके निधन के बाद गर के युवकों की टोली पिछले 10 वर्ष से प्रतिदिन सुबह भगवान का अभिषेक करने जाती रही और आज हालात बदल गए। इस गुफा में बिराजित भोलेनाथ के दर्शन करने व अपने मन्नत पूर्ण करने के लिए नगरवासियों के अलावा बोहेड़ा, बांसी, कानोड़, भींडर, खेरोदा तक सैंकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन ट्रेन में बैठकर यहां आते हैं। युवकों की टोली ने श्रमदान कर इस स्थान को मनमोहक बना दिया और जनप्रतिनिधियों व आमजन के सहयोग से लगभग 25 लाख रुपए खर्च कर स्मृति वन बनाकर 500 से अधिक पौधे लगाए जो अब पेड़ बन गए है।

प्रकृति स्वयं भगवान का जलाभिषेक करती है

साथ ही खुला चौक बना दिया जहां अब आए दिन सत्संग किया जाता है। गुफा के द्वार पर जहां भोलेनाथ बिराजते है ठीक ऊपर पहाड़ से सावन माह में रुक – रुककर जल की एक – एक बूंद गिरती रहती है जिससे लगता है कि प्रकृति स्वयं भगवान का जलाभिषेक करती है। कालांतर में खंडित हुए शिवलिंग के स्थान पर प्रभु की नई प्रतिमा भी गुप्तेश्वर महादेव मंदिर विकास समिति के माध्यम से सन्त अनंतराम शास्त्री के मुखरबिंद से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्थापित की है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की बात मानें तो उनको यहां आते ही मानसिक शांति मिलती है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए आम दिनों में तो चलकर आ – जा सकते हैं लेकिन बरसात के समय कीचड़ फेल जाता है। इस मार्ग पर 300 मीटर सीसी सड़क की दरकार है।
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