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चित्तौड़गढ़

मोरिंगा की खेती के लिए मशहूर हो रहा राजस्‍थान का ये गांव, सेहत के साथ जेब भी संवार रहा; विदेशों में है भारी डिमांड

Moringa Farming Rajasthan: औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी पत्तियों के पाउडर की जबरदस्त मांग है।

चित्तौड़गढ़Jan 14, 2025 / 03:27 pm

Alfiya Khan

जितेन्द्र सारण
चित्तौड़गढ़। सब कुछ होते हुए भी यदि सेहत अच्छी नहीं है तो समझ लो इंसान के पास कुछ भी नहीं है। कहने को बहुत छोटा सा नाम है मोरिंगा लेकिन, सेहत को चंगा बनाए रखने में इसका कोई मुकाबला नहीं। चित्तौड़गढ़ के छोटे से गांव इंदौरा में बड़े पैमाने पर हो रही मोरिंगा (सहजन) की आर्गेनिक खेती अब सेहत के साथ जेब भी संवार रही है।
चित्तौड़गढ़ से करीब चालीस किलोमीटर दूर गंगरार के इंदौरा गांव में करीब ढ़ाई से तीन बीघा जमीन पर मोरिंगा यानी सहजन की आर्गेनिक खेती की जा रही है। जहां मोरिंगा के करीब 300 पेड़ हैं। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी पत्तियों के पाउडर की जबरदस्त मांग है। जो 800 से 1000 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से अन्य जिलों में सप्लाई किया जा रहा है। जिले में मोरिंगा की खेती का सबसे पहला प्रयोग परिवहन विभाग के सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक सत्यवीर यादव ने किया है।

विदेशों तक मशहूर है मोरिंगा

दक्षिण भारत में तो मोरिंगा खूब उपयोग में आता है। वहां लोग इसके फूल, फल और पत्तियों का उपयोग व्यंजनों में वर्ष पर्यन्त करते हैं। इसके अलावा फिलीपिंस, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में सहजन के बीजों से तेल और पाउडर बनाकर विदेशों में निर्यात किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री ने खुलासा किया तो लोगों में भी बढ़ा क्रेज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2020 में फिट इंडिया मूवमेंट के मौके पर सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि वे सप्ताह में एक या दो बार सहजन (मोरिंगा) के पराठे का सेवन करते हैं। प्रधानमंत्री के इस खुलासे के बाद आमजन में भी मोरिंगा के सेवन को लेकर क्रेज बढ़ा है।
सहजन भारतीय मूल का मोरिन्गासा परिवार का सदस्य है। इसका वनस्पतिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। सामान्यतया यह एक बहुवर्षिक कमजोर तना और छोटी-छोटी पत्तियों वाला लगभग दस मीटर से भी उंचा पौधा है। यह कमजोर जमीन पर भी बिना सिंचाई के सालों भर हरा-भरा और तेजी से बढऩे वाला पौधा है।

प्रति हैक्टेयर 500 ग्राम बीज

सहजन में बीज और शाखा के टुकड़ों दोनों से ही प्रवर्धन होता है। अच्छी फलन और साल में दो बार फलन के लिए बीज से प्रवर्धन करना अच्छा है। एक हैक्टेयर में खेती करने के लिए 500 ग्राम बीज पर्याप्त हैं। बीज को सीधे तैयार गड्ढों में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढों में लगाया जा सकता है।
पौधे लगाने के लगभग 160-170 दिन में फल तैयार हो जाता है। फायदे की बात यह है कि सहजन की खेती बंजर भूमि पर भी की जा सकती है। सहजन में दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम और संतरे की तुलना में सात गुणा विटाविन सी है।

कैल्शियम और आयरन का भण्डार है मोरिंगा

अव्यवस्थित जीवनशैली और फास्ट फूड के बढ़ता चलन सेहत को बिगाड़ रहा है। बच्चों और बड़ों में कैल्शियम और आयरन की कमी आम हो गई है। इसकी पूर्ति के लिए मोरिंगा कैल्शियम और आयरन का भण्डार है।

300 तरह की बीमारियों के इलाज में उपयोग

सहजन के फूल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में उपयोग होता है। जबकि इसकी छाल, पत्तियों और बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार की जाती है। जो करीब 300 तरह की बीमारियों के इलाज में काम आती है। कैल्शियम भरपूर होने से यह साइटिका, गठिया आदि में उपयोग ली जाती है। इससे लीवर की सेहत भी अच्छी रहती है।
-डॉ. तरुण प्रमाणिक, प्रभारी, जिला आयुर्वेद चिकित्सालय चित्तौड़गढ

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