15वीं शताब्दी में करवाया था निर्माण
विजय स्तंभ को शौर्य का प्रतीक माना जाता है। इसका निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी में कराया गया था। वर्ष 1440 में मालवा के सुल्तान पर विजय की स्मृति में राणा कुंभा ने 37.19 मीटर (122 फीट 9 इंच) ऊंचे विजय स्तंभ का निर्माण कराया। इसका निर्माण कार्य 1442 में शुरू हुआ और 1448 में पूरा हुआ। तब इसके निर्माण पर करीब 90 लाख खर्च हुए थे। भगवान विष्णु को समर्पित विजय स्तंभ के ऊपरी तल तक जाने के लिए अंदर से सौपान बने हुए हैं। सबसे ऊपरी तल पर स्थित शिलालेखों में चित्तौड़ के शासक हमीर से राणा कुंभा तक वंशावली उत्कीर्ण है। यह भी पढ़ें
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पुलिस की भी पहचान बना विजय स्तंभ
राजस्थान पुलिस की वर्दी पर वर्ष 1952 से विजय स्तंभ को प्रतीक चिन्ह के रूप में लगाया जा रहा है। इसका उद्देश्य राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देना, पुलिस कर्मियों में गर्व और पहचान की भावना जागृत करना है। मेवाड़ के राजाओं और उनकी सेना का शौर्य बयां कर रहा विजय स्तंभ अपने आप में कई खूबियां समेटे हैं। यह भी पढ़ें
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बचाव के लिए टिल टेल क्रेक्स लगाए
चित्तौड़ दुर्ग पर विजय स्तंभ सहित कई स्मारकों पर टिल टेल क्रेक्स (मसाले के साथ कांच की पट्टियां) लगवाई हैं। ताकि स्मारक पर कोई क्रेक्स आए तो पता चल सके। हर माह रिपोर्टिंग की जाती है। बंदरों से सुरक्षा के लिए रबड़ के कांटे लगाए हुए है। स्मारकों की सुरक्षा को लेकर पूरे प्रयास कर रहे हैं। गोविन्दसिंह मीणा, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् जोधपुर
2- विजय स्तंभ में कई तरह की सजावटी डिजाइन हैं और इस पर कई हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।
3- स्तंभ में नौ मंजिल तक जाने के लिए संकरी व गोलाकार 157 सीढ़ियां हैं और सबसे ऊपरी मंजिल से दुर्ग दिखाई देता है।
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नौ मंजिला, ऊंचाई 122 फीट 9 इंच
1- लाल और सफेद पत्थर से इसका निर्माण कराया गया था। इसको बनाने में पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी भी मसाले का उपयोग नहीं किया गया।2- विजय स्तंभ में कई तरह की सजावटी डिजाइन हैं और इस पर कई हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।
3- स्तंभ में नौ मंजिल तक जाने के लिए संकरी व गोलाकार 157 सीढ़ियां हैं और सबसे ऊपरी मंजिल से दुर्ग दिखाई देता है।