आलम ये है कि वेतन के लिए शिक्षकों को हर महीने खाली पदों की तलाश कर शिक्षा विभाग में आवेदन करना पड़ रहा है। जिससे उनकी बेवजह ऊर्जा खर्च होने के साथ इसका असर प्रवेशोत्सव पर भी पड़ रहा है। वहीं, शिक्षा विभाग के लिए भी ये वेतन व्यवस्था सिरदर्द बन गई है। क्योंकि वेतन व्यवस्था के आदेश नियुक्ति अधिकारी द्वारा रिक्त पद से किए जाते हैं। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं खाली पद नहीं मिलने पर शिक्षा विभाग तृतीय श्रेणी शिक्षकों को भी व्याख्याता व प्राचार्य के खाली पदों से वेतन दे रहा है।
यूं बढ़ी परेशानी
वेतन व्यवस्था बिगडऩे का मुख्य कारण पिछली सरकार में शिक्षकों की डीपीसी और क्रमोन्नत स्कूलों में नए पदों की वित्तीय स्वीकृती जारी नहीं करना है। इसके अलावा तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले नहीं करने पर भी पद खाली नहीं हो सके। ऊपर से नई भर्ती के शिक्षक और महात्मा गांधी स्कूलों में दूसरे जिलों से आए शिक्षकों से अधिशेषों की संख्या ज्यादा हो गई। लिहाजा पदों के मुकाबले शिक्षकों का संतुलन बिगड़ गया।
वेतन के लिए हर महीने ढूंढ रहे स्कूल
वेतन व्यवस्था के लिए अधिशेष शिक्षक अब हर महीने पहले खाली पदों वाली स्कूल ढूंढ रहे हैं। इसके बाद वेतन व्यवस्था के लिए नियुक्ति अधिकारी के पास सीबीईओ के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है। आदेश होने के बाद अपनी सर्विस बुक के साथ उस स्कूल में जाकर वेतन के लिए प्रयास किया जाता है। ये समस्या तब और बढ़ रही है जब वेतन उठाने के बाद उस पद पर दूसरा शिक्षक नियुक्ति ले लेता है। क्योंकि तब अधिशेष शिक्षक को वेतन के लिए फिर नई स्कूल की तलाश करनी पड़ रही है। नवक्रमोन्नत स्कूलों में पदों की वित्तीय स्वीकृति जारी नहीं होने, चार सत्र की डीपीसी बकाया होने के कारण रिक्त पदों का संतुलन बिगड़ गया है। इससे शिक्षकों की वेतन व्यवस्था में प्रशासनिक मशीनरी की ऊर्जा बेवजह खर्च हो रही है।