लंबे समय तक धूम्रपान के धुएं से होने वाला रोग सीओपीडी होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी, गोबर के कंडे, केरोसिन, कोयले से चूल्हे पर भोजन पकाने, पानी गर्म करते समय उठने वाले धुएं से सीओपीडी रोग हो सकता है। खेतों में उड़ने वाली धूल से भी सीओपीडी रोग का खतरा हो सकता है। दो मौसम के बीच के समय में यानी संधि काल में भी सीओपीडी रोग होने का खतरा हो सकता है।
धूम्रपान बढ़ा सकता है खतरा
सीओपीडी के मरीजों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। मरीजों के फेफड़ों का एक्स-रे, सीटी स्कैन, रक्त की जांच, इसीजी सहित आवश्यक टेस्ट किए जाते हैं। रिपोर्ट के आधार पर फेफड़ों की सूजन कम करने के लिए इन्हेलर, नेबुलाइजर के जरिए अलग-अलग ब्रोंकोडायलेटर दवा दी जाती है।सांस लेने में होती परेशानी
सीओपीडी के हर हमले में मरीज के फेफड़ों पर असर पड़ता है। उनमें हवा का प्रवाह सीमित हो जाता है। चिकित्सक भी मरीज की हैल्थ हिस्ट्री व क्लिनिकल परीक्षण पर भरोसा करते हैं। ऐसे में कई बार बीमारी के शुरुआती संकेतों पर ध्यान नहीं जाता। लक्षण सामने आने तक यह बीमारी गंभीर रूप ले चुकी होती है। ऐसे मरीजों की बीमारी स्पाइरोमीट्री नामक लंग फंक्शन टेस्ट से आसानी से पकड़ी जा सकती है। लेकिन इसका उपयोग कम हो रहा है। इसका मुख्य कारण स्पाइरो मीटर्स की कम उपलब्धता और इस क्षेत्र में इनोवेशन की कमी है।इनका कहना है
सीओपीडी की बड़ी वजह धूम्रपान करना भी है। इसके धुएं से फेफड़े सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। इसके अलावा लगातार धूल-मिट्टी के संपर्क में आने से भी रोग बढ़ जाता है। ऐसे में सावधानी रखें।–डॉ. अनिश जैन, उपाचार्य, मेडिकल कॉलेज चित्तौड़गढ़