यह सच है कि जावदा क्षेत्र के 21 किसान अब सामान्य और घाटे की खेती को छोड़कर टिश्यू कल्चर केले की खेती शुरू कर रहे हैं। इन किसानों ने छत्तीसगढ़ से केले की पौध मंगवाई है। अन्य किसान भी अब पौध देखकर प्रेरित हुए हैं। उनका रुझान भी केले की खेती की तरफ बढ़ रहा है।
महाराष्ट्र से मीठे होंगे केले
छत्तीसगढ़ के केले महाराष्ट्र के केलों से मीठे हैं। एक वर्ष बाद फलोत्पादन शुरू होगा जो तीन साल तक चलेगा। एक पौधे की डाल पर 30 से 35 किलोग्राम वजन तक केले के गुच्छे लगते हैं। केलों का स्वाद महाराष्ट्र, गुजरात के केलों से बेहतर है। एक बगीचे में करीब 300 क्विंटल केले के उत्पादन का अनुमान है। ऐसे होगी केले की खेती
आमतौर पर केले के पौधे जनवरी व फरवी माह में लगते है। पर समय पर पौध तैयार नहीं होने से मई माह में पौध की सप्लाई हुई। जावदा के किसानों ने टिश्यू कल्चर की खेती को अपनाकर एक नए कृषि व्यवसायीकरण की परम्परा की शुरुआत की है। माना जाता है कि केले की खेती पर प्रति एकड़ एक लाख रुपए तक की लागत आती है और ढ़ाई लाख रुपए तक शुद्ध मुनाफा होता है। टिश्यू कल्चर एक ऐसी वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमे केले के पौधे को बायो लैब में तैयार किया जाता है और फिर खेत में रोपा जाता है। टिश्यू कल्चर से केले के पौधे वायरस और अन्य रोगों से मुक्त होते हैं। केले की फसल का समय 10 माह का होता है, जिसमें प्रति वर्ष जुलाई में नए पौधे लगाए जाते हैं और अगले वर्ष अक्टूबर के आसपास फलों के गुच्छे तैयार हो जाते हैं।