चित्रकूट

जब तीनों लोक लंकेश की गर्जना से भयक्रांत हुआ, हिलने लगी धरती, कांप उठा आसमां

रामलीला मंचन में जब लंकाधिपति रावण ने दर्शकों के सामने गर्जना भरी।

चित्रकूटSep 25, 2017 / 03:37 pm

आलोक पाण्डेय

चित्रकूट, मुख्यालय स्थित ऐतिहासिक श्री रामलीला समाज पुरानी बाजार कर्वी के तत्वाधीन में हो रहे रामलीला मंचन में जब लंकाधिपति रावण ने दर्शकों के सामने गर्जना भरी तो सहसा लगा की प्रत्यक्ष रावण ही तो नहीं प्रकट हो गया। कलाकारों द्वारा हर पात्र को इतने जीवंत तरीके से अभिनीत किया जा रहा है कि जब वे नजरों के सामने आते हैं तो महसूस होता है कि जिन पात्रों के बारे में सुना और समझा गया है वे इस वक्त प्रत्यक्ष नजरों के सामने विद्यमान हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र जीवन की किन्ही भी परिस्थितियों में संयम न खोने की सीख देता है तो माता सीता नारी शक्ति और ममता का सन्देश देती हैं तो वहीं रावण का अहंकार उसके विनाश की लीला का स्वयं आमंत्रण देते हुए व्यक्ति को अपनी शक्ति सामर्थ्य का दुरुपयोग न करने और अधर्म के मार्ग पर न चलने की सीख देता है। बड़ों की सेवा करना व उनका सम्मान और आज्ञापालन का सन्देश देते हुए लक्ष्मण मनुष्य को अपने कर्तव्य के प्रति हमेशा सजग रहन का सन्देश देते हैं। आज के आधुनिक परिवेश में भी रामलीला की प्रसांगिकता कम नहीं हुई और शायद इसीलिए देश के छोटे बड़े इलाकों से लेकर महानगरों तक रामलीला का मंचन हो रहा है। रामलीला का मंचन अपने पूरे शबाब पर है। जीवंत अभिनय द्वारा कलाकार दर्शकों को एक टक होकर अपनी ओर निहारने को मजबूर कर देते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट में भी रामलीला मंचन की धूम है। जनपद के मऊ, राजापुर, मानिकपुर, भरतकूप, शिवरामपुर जैसे बड़े कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में श्री राम के चरित्र का सजीव दर्शन मंझे हुए कलाकरों द्वारा दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।

मुख्यालय स्थित ऐतिहासिक पुरानी बाजार रामलीला मंचन में जब प्रभु श्री राम माता सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास पर निकले तो पूरी अयोध्या की आंखों से आंसू बह निकले, अयोध्या का कण कण श्री राम के वियोग में करुण क्रंदन करने लगा तो पिता दशरथ अपनी सुध बुध खो बैठे और प्रिय भाई भरत इस वियोग से बेसुध हो गए। अयोध्या से यात्रा करते हुए श्री राम प्रयाग ऋषि वाल्मिकी के आश्रम गए। ऋषि वाल्मिकी से पूरे वृतांत का वर्णन करते हुए श्री राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास पर निकलने की बात उन्हें बताई और उनसे वनवास काल के दौरान निवास करने के लिए कोई उचित स्थान बताने का आग्रह किया। राम की वर्णन यात्रा सुनकर वाल्मिकी ऋषि भी दुखी हो गए और उन्होंने श्री राम को वनवास काल के दौरान पवित्र स्थान “चित्रकूट” में रहने का सुझाव देते हुए कहा-

“चित्रकूट गिरी करहू निवासू। तहं तुम्हार सब भांती सुपासू।
सैलु सुहावन कानन चारु। करि केहरि मृग बिहग बिहारु।,

हे श्री राम आप चित्रकूट में निवास कीजिए जहां सुहावना पर्वत और सुंदर वन है। चित्रकूट का वर्णन करते हुए वाल्मिकी ऋषि ने राम को चित्रकूट की महिमा के विषय में विस्तार से बताया। वनवासकाल की विभिन्न लीलाओं का जीवंत मंचन करते हुए दर्शकों के सामने श्री राम के आदर्श जीवन चरित्र को प्रस्तुत किया गया। उधर लंका में दशानन रावण के दरबार में सन्नाटा पसरा हुआ था और सामने उसकी बहन शूपर्णखा अपनी कटी हुई नाक लिए रावण के सामने खड़ी थी। बहन को इस दशा में देख क्रोध से विचलित लंकेश ने पूरा वृतांत शूपर्णखा के द्वारा सुना की कैसे वनवासी लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी। बहन के साथ हुई इस घटना व् अपमान से लंकेश क्रोधाग्नि में गरज उठा, उसकी गर्जना से दरबार कांप उठा, तीनों लोक भयभीत हो उठे, धरती में कम्पन होने लगा। दशानन ने अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने का वचन लिया और माता सीता का हरण करने के लिए निकल पड़ा। है।

Hindi News / Chitrakoot / जब तीनों लोक लंकेश की गर्जना से भयक्रांत हुआ, हिलने लगी धरती, कांप उठा आसमां

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.