चित्रकूट

जानिए क्यों बुन्देलखण्ड के इस पहाड़ को देवी से मिला कोढ़ी होने का श्राप

पूरे बुन्देलखण्ड की आस्था का प्रमुख केंद्र बिंदु है खत्री पहाड़।

चित्रकूटSep 24, 2017 / 08:00 am

नितिन श्रीवास्तव

जानिए क्यों बुन्देलखण्ड के इस पहाड़ को देवी से मिला कोढ़ी होने का श्राप

चित्रकूट. मां शक्ति की भक्ति भाव से आराधना स्तुति करने की पवित्र बेला नवरात्रि की पूरे देश में धूम है। मां के प्रसिद्द शक्तिपीठों में भक्तों का हुजूम सोलह श्रृंगार से सजी मां जगदम्बा की एक झलक पाने को उमड़ रहा है। शक्ति स्वरूपणी की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए आस्थावानों भक्तों और साधकों द्वारा कई प्रकार की आराधना स्तुति मां के दरबार में की जा रही है। प्रसिद्द शक्तिपीठों में श्रृद्धालुओं का सैलाब मां आदि शक्ति के दर्शन को उतावला है। आदि शक्ति की न जाने कितनी लीलाएं विभिन्न रूपों में किवदंतियों पौराणिक मान्यताओं और ऐतिहासिक उल्लेखों के माध्यम से कही और सुनी जाती हैं तथा उनसे सम्बंधित स्थानों पर जब भक्तों के पांव पड़ते हैं तो उनसे एहसास होता है कि जो लीला उन्होंने मां के बारे में सुनी थी उस स्थान की महिमा उसका महात्म्य वैसा ही नजरों के सामने विद्यमान हो जाता है। मां जगदम्बा के प्रसिद्द स्थानों के बारे में तो आज तक आपने न जाने कितनी बार सुना होगा और शायद आप वहां पर मत्था भी टेक आए हों लेकिन नवरात्रि के इस शुभ समय पर आदि शक्ति से सम्बंधित देश प्रदेश में कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं जिनकी महत्ता किसी अन्य प्रसिद्ध शक्तिपीठों से कम नहीं मानी जाती, और कहा भी जाता है कि मां जगदम्बा तो एक ही हैं परन्तु उनके रूप उनकी लीलाएं अनेकों हैं। भक्त के लिए करुणा का सागर हैं मां तो आतताइयों अधर्मियों अत्याचारियों दुष्टों के लिए उनके दंड का प्रावधान हैं आदि शक्ति मां जगदम्बा। हृदय से क्षमा मांगने पर गलती करने वाले को भी क्षमा करते हुए मोक्ष प्रदान करती हैं आदि शक्ति। देश के प्रसिद्द शक्तिपीठों से इतर हम आपको रूबरू कराते हैं कुछ ऐसे अगूढ़ स्थानों के बारे में जहाँ नवरात्रि पर उमड़ता है आस्थावानों का हुजूम, जहां की शक्ति व कृपा से न जाने कितने भक्तों की झोलियाँ भरी कितने आस्थावानों के जीवन में नई रौशनी आई। विनती करने पर कृपा बरसाती हैं आदि शक्ति तो आज्ञा पालन न करने पर श्राप से दंडित भी करती हैं शक्ति स्वरूपणी। कुछ ऐसी ही कहानी किवदंती और लोक व पौराणिक मान्यता है बुन्देलखण्ड के उस एक पहाड़ के बारे में जिसे मां विंध्यवासिनी से मिला है कोढ़ी होने का श्राप और खास बात तो यह कि यह पहाड़ आज भी सफ़ेद (कुष्ट रोगी) है। जी हां सुनने में शायद थोड़ा अजीब लगे कि पहाड़ कैसे और क्यों श्रापित हुआ तो आइए जानते हैं इस पूरी लीला के बारे में।
 

नवरात्रि के पवन अवसर पर देवी के कई स्थान देश भर में भक्ति भाव के सागर में गोता लगा रहे हैं। हर जगह की अपनी एक अलग महत्ता है, चाहे वह प्रसिद्द शक्तिपीठों की हो या फिर किन्ही अन्य स्थानों की। इन्ही महत्ताओं और उनकी शक्तियों से परिचित आस्थावानों का सैलाब नवरात्रि में मां के दर्शन पूजन को उमड़ पड़ता है। आज एक ऐसे ही स्थान के बारे में जानिए जहां मां विंध्यवासिनी नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को आकर भक्तों को दर्शन देती हैं और भक्तों के जीवन का कल्याण होता है। इन सबके बीच सबसे खास और रोचक तथ्य यह कि मां जिस स्थान पर भक्तों को दर्शन के लिए आती हैं वह स्थान खुद उन्हीं (मां विंध्यवासिनी) के द्वारा श्रापित होना माना जाता है और वो भी कोढ़ी होने का श्राप, ये स्थान है एक पहाड़ जिसे कोढ़ी होने का श्राप मिला है (लोकमान्यताओं किवदंतियों के अनुसार) मां विंध्यवासिनी से और पहाड़ की विनती पर दयालु आदि शक्ति ने नवरात्रि की अष्टमी व नवमी तिथि को खुद उपस्थित रहकर भक्तों को दर्शन देने का वरदान दिया।
 

जाने इस स्थान के बारे में

बुन्देलखण्ड के चित्रकूटधाम मण्डल के अंतर्गत बांदा जनपद में स्थित है “खत्री पहाड़”, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह मां विंध्यवासिनी (जो यूपी के मिर्जापुर में विराजित हैं) के श्राप से श्रापित है। पहाड़ को मिला है कोढ़ी होने का श्राप। पूरे बुन्देलखण्ड की आस्था का प्रमुख केंद्रबिंदु है खत्री पहाड़। वर्ष की दोनों नवरात्रियों (चैत्र और शारदीय) की अष्टमी और नवमी तिथि को उमड़ता है भक्तों का सैलाब। विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर की तरह इस स्थान पर भी बच्चों के मुंडन संस्कार का अपना महत्व है और आम दिनों से लेकर नवरात्रि के दिनों में काफी संख्या में दूर दूर से पहुंचे आस्थावान अपने बच्चों का मुंडन संस्कार सम्पन्न करवाते हैं।
 

ये है मान्यता

खत्री पहाड़ के बारे में प्रचलित स्थानीय जनश्रुतियां किवदंती और लोकमान्यताओं के अनुसार मिर्जापुर में विराजित मां विंध्यवासिनी ने सबसे पहले इसी पहाड़ पर निवास करने का निश्चय किया और पहाड़ को उन्होंने आज्ञा दी कि वो उनके लिए स्थान का प्रबन्ध करे लेकिन पहाड़ ने मां का भार सहन करने में असमर्थता जता दी और मां को निवास करने से मना कर दिया। आज्ञा पालन न होने से क्रोध में आईं मां विंध्यवासिनी ने पहाड़ को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। मां के रौद्र रूप व श्राप से भयभीत खत्री पहाड़ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मां से क्षमा मांगी। याचक के लिए कोमल हृदयी मां ने पहाड़ को वरदान दिया कि हर नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को मेरा निवास तुम्हारे शिखर पर होगा और इतना कहने के बाद मां विंध्यवासिनी लुप्त हो गईं और मिर्जापुर की विंध्य पर्वत श्रृंखला में जाकर निवास करने लगी। मंदिर से जुड़े पुजारियों में एक रज्जन तिवारी बताते हैं कि ऐसी ही लोकमान्यता किवदन्ती इस स्थान के बारे में प्रचलित है। पुजारी ने बताया कि नवरात्रि की अन्य तिथियों की अपेक्षा अष्टमी और नवमी तिथि को भक्तों की भीड़ बड़ी संख्या में मां के दर्शन को उमड़ती है और खास बात यह कि अष्टमी की मध्यरात्रि को मंदिर की मूर्ति में एक खास चमक रौनक आ जाती है जिससे यह आभास होता है कि मां का आगमन हो गया है।
 

बहरहाल आस्था की कसौटी सिर्फ आस्था होती है जिसपर विश्वास की नींव टिकी होती है और मां आदिशक्ति के प्रति इसी आस्था और विश्वास के कारण भक्त जीवन की हर मुश्किलों से पार हो जाता है।

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