नेपथ्य के पीछे है पाठा की खूबसूरती घने जंगल पहाड़ और दुर्गम रास्तों के बीच पाठा की खूबसूरती आज तक नेपथ्य के पीछे ही है। दस्यु समस्या ने तो ग्रहण लगाया ही है पिछले कई दशकों से इलाके के विकास के रास्ते पर परंतु ज़िम्मेदारों यानी हुक्मरानों और नौकरशाही की उदासीनता के चलते भी पाठा को आज तक अपेक्षाओं का घूंट पीना पड़ा है।
स्थानीय स्तर पर शुरू हुआ प्रयास पाठा को उसकी वास्तविक पहचान और चित्रकूट को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के उद्देश्य के तहत स्थानीय स्तर पर ही कुछ युवाओं द्वारा क्षेत्र के गुमनाम दर्शनीय स्थलों की खोज शुरू की गई और फिर जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए।
मौजूद हैं प्राचीन पौराणिक और ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल अंग्रेजों के समय के थाने (जहां कभी क्रांतिकारियों को फांसी दिए जाने की बात कही जाती है), तहसील, जैसी अन्य ऐतिहासिक जर्जर हो चुकी इमारतों के आलावा आदिमानव निर्मित प्राचीन शैल चित्र गुफाएं प्राचीन टीले इलाके में पुरातात्विक दृष्टि से रिसर्च की संभावनाओं को बल देते हैं तो साथ ही बड़े ऋषि मार्कण्डेय आश्रम सरभंग ऋषि का आश्रम और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल पाठा को एक अलग श्रेणी में खड़ा करता है।
मुहिम को मिल रहा सहारा क्षेत्र की गुमनाम धरोहरों के बारे में जिला प्रशासन से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तक को अवगत कराने वाले क्षेत्र के युवा समाजसेवी अनुज हनुमत के प्रयास से इस मुहिम को अब प्रशासन का भी सहारा मिल गया है। जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर ने सम्बंधित इलाके का भ्रमण कर पाठा को पर्यटन के रूप में विकसित करने का खाका तैयार किया है। शनिवार को जनपद दौरे पर आए जिले के नोडल अधिकारी और निदेशक (दिव्यांगजन सशक्तिकरण) डॉ बलकार सिंह ने भी कुछ प्राचीन स्थलों का दौरा कर जानकारियां एकत्र की और सरकार तक क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बात पहुंचाने का आश्वासन दिया। जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर ने कहा कि पाठा में काफी संभावनाएं हैं पर्यटन की और प्रयास किया जा रहा है कि ये सारी जगहें एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हों।