22 जुलाई सन 2007 का वह दिन जब बीहड़ का बेताज बादशाह खूंखार डकैत ददुआ एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया. कई सालों से ददुआ के इनकाउंटर का मैप बना रही यूपी एसटीएफ ने झलमल जंगल में आतंक के आका का जब खात्मा किया तो सहसा लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि ददुआ मारा गया है. दूरदराज इलाकों से जीप व ट्रैक्टर में लदकर लोग उसे देखने आ रहे थे कि ददुआ दिखता कैसा है. इसी दौरान ददुआ के इनकाउंटर की खुशी में उत्साहित एसटीएफ टीम को एक दूसरे बड़े डकैत अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिया के लोकेशन की जानकारी मिली. ठोकिया उस समय 5 लाख का इनामी डकैत था और पुलिस का जानी दुश्मन कहा जाता था उसे.
चित्रकूट के मानिकपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत झलमल जंगल में ददुआ का इनकाउंटर कर ठोकिया का लोकेशन मिलने के बाद एसटीएफ टीम चित्रकूट-बांदा के सीमावर्ती फतेहगंज थाना क्षेत्र(बांदा) अंतर्गत बघोलन का टीला बघोलनबारी वन चौकी के पास से गुजर रही थी. उसी दौरान अपने मुखबिरों की सटीक सूचना पर घात लगाए बैठे दस्यु सरगना ठोकिया ने खेल डाला मौत का खूनी खेल.
बीहड़ के संकरे रास्ते से गुजर रही एसटीएफ टीम को निशाना बनाते हुए ठोकिया ने अपनी गैंग के साथ टीम पर धावा बोल दिया. एसटीएफ जवानों को संभलने का मौका तक न मिला. मौत का पैगाम लेकर डकैतों की बंदूकों से निकली गोलियां एसटीएफ टीम पर भारी पड़ रही थीं. ठोकिया की आंखों में खाकी के प्रति खून सवार था. गैंग ने चारों तरफ से घेरते हुए टीम को निशाना बनाया था.
लखनऊ से दिल्ली तक मची थी हलचल
एसटीएफ टीम पर हमले व जवानों की शहादत ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हलचल मचा दी थी. यूपी के तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह खुद घटनास्थल पर पहुंचे तो उनके भी रोंगटे खड़े हो गए. गोलियों से एसटीएफ जवानों का शरीर बुरी तरह छलनी हो गया था.
एक साल बाद एसटीएफ ने लिया बदला
22 जुलाई 2007 के ठीक एक साल बाद 4 अगस्त 2008 को यूपी एसटीएफ की उसी टीम ने ठोकिया को उसी के गांव में मुठभेड़ में ढेर कर दिया. एसटीएफ के तत्कालीन एसएसपी अमिताभ यश जिन्होंने ददुआ का भी इनकाउंटर किया था उनकी टीम ने ठोकिया से अपने जवानों की शहादत का बदला ले लिटा. बीहड़ से एक और आतंक का खात्मा हुआ.
अपने ही भूल बैठे जवानों की शहादत
जिस जगह पर ठोकिया ने एसटीएफ टीम को निशाना बनाया था वहां पुलिस व जनसहयोग के माध्यम से शहीद स्मारक बनाया गया है. लेकिन खुद पुलिस अपने जवानों की शहादत को हर साल भूल जाती है. 12 वर्षों के दौरान कभी इस स्थान पर पुलिस ने शहीद जवानों की याद में कोई खास कार्यक्रम नहीं किया. यहां तक कि श्रद्धांजलि भी देना भूल जाते हैं महकमे के जिम्मेदार. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ. बहरहाल बीहड़ में आज भी लोगों की आंखों में 12 बरस पहले के उस खूनी खेल का मंजर कैद है और आज भी उन इलाकों में एक अजीब सा सन्नाटा खौफ की कहानी खुद बयां करता है.