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चित्रकूट में विंध्य पर्वत शृंखला पर मिले हजारों साल पुराने शैल चित्र, डीएम ने कहा, पुरातत्व विभाग की टीम करेगी सर्वे

Chitrakoot इतिहासकार डा संग्राम सिंह की टीम को जंगल में खोज के दौरान विंध्य पर्वत शृंखला पर स्थित परमहंस महाराज के धारकुंडी आश्रम के पास अमवा में हजारों साल पुराने दुर्लभ प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले हैं।
 

चित्रकूटAug 11, 2022 / 12:41 pm

Sanjay Kumar Srivastava

चित्रकूट में विंध्य पर्वत शृंखला पर मिले हजारों साल पुराने शैल चित्र, डीएम ने कहा, पुरातत्व विभाग की टीम करेगी सर्वे

इतिहासकार डा संग्राम सिंह की टीम को जंगल में खोज में अमवा में हजारों साल पुराने दुर्लभ प्रागैतिहासिक शैल चित्र मिले हैं। यह स्थान विंध्य पर्वत शृंखला पर स्थित परमहंस महाराज के धारकुंडी आश्रम के पास है। कल्याण गढ़ से करीब आठ किमी दूर धारकुंडी आश्रम के पास जंगल में पांच शिला खंडों में प्रागैतिहासिक युगीन शैल चित्रों के प्रमाण मिले हैं। यह शैल चित्र हेमेटाइट प्रकार के हैं। यह गेरुआ रंग के हैं। इन चित्रों में अधिकतर जंगली पशुओं का अंकन किया गया है। उनके ऊपर छतरीनुमा चट्टान भी है। वस्तुत शैल चित्रों का वर्ण्य विषय तत्कालीन मानवीय गतिविधियों का निरूपण है।
प्रागैतिहासिक शैलचित्र आज भी सुरक्षित – इतिहासकार डा संग्राम सिंह

इतिहासकार डा संग्राम सिंह कहना है कि, विंध्य क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की खोज का श्रेय आर्चीवाल्ड और जान ककवर्न को जाता है। ककवर्न ने अपने शोध का सचित्र वैज्ञानिक विवरण एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल के जर्नल में वर्ष 1883 में प्रकाशित किया था। अमवा से मिले वैसे ही प्रागैतिहासिक शैलचित्र आज भी सुरक्षित हैं।
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देखने के बाद ही कुछ कह सकेंगे – चित्रकूट जिलाधिकारी

इस नई सूचना पर चित्रकूट जिलाधिकारी अभिषेक आनंद ने कहाकि, .प्राचीन शैल चित्रों के बारे में देख कर ही कुछ कह सकेंगे। जल्द ही टीम वहां जाकर रिपोर्ट तैयार करेगी। मनोज कुमार वर्माए सहायक अभियंता भारतीय पुरातत्व विभाग शैलचित्र को पुरातत्व विभाग की टीम से सर्वे कराएंगे। यदि पुराने शैल चित्र हैं तो इनको संरक्षित किया जाएगा।
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चित्रकूट में भगवान राम ने काटा था वनवास

चित्रकूट में प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण संग साढ़े बारह वर्षों का वनवास काटने के लिए चित्रकूट का चयन करने के प्रमाण यहां की आध्यात्मिक और प्राचीनता में रचे बसे हैं। जगह.जगह इसके प्रमाण मिलते भी हैं। जिम्मेदारों की उपेक्षा और अपनी धरोहरों के प्रति उदासीनता इन पर भारी पड़ रही है। चौरासी कोस की परिक्रमा में ये अवशेष बिखरे हैं, जिन्हें संजोने की जरूरत है।

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