भगवान श्रीराम की अद्भुत लीलाओं का यह मंचन, छिंदवाड़ा शहर के श्रीराम लीला मंडल के माध्यम से किया जा रहा है। इसकी स्थापना 135 वर्ष पूर्व 1889 में हुई थी। श्रीरामलीला मंच, छोटी बाजार स्थित श्रीराम मंदिर का ही भाग है। विशेष संयोग यह भी है कि इसका निर्माण भी अयोध्या से आए संत चौबे बाबा के कारण हुआ है। आस्था और विश्वास की इस परंपरा का ही प्रमाण है कि चौबे बाबा की जीवित समाधि आज भी रंगमंच पर ही स्थित है।
श्रीराम लीला के मंचन में आधे से अधिक नाट्य कलाकार ही भूमिकाएं निभाते हैं और स्वयं को धन्य मानते हैं कि भक्त के रूप में भगवान के चरित्र को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि ये किसी प्रकार का शुल्क नहीं लेते हैं। कलाकारों की मान्यता है वे अपनी प्राचीन परंपरा के निर्वहन के पवित्र उद्देश्य से श्रीरामलीला के प्रसंगों का चित्रण कर रहे हैं।
135 साल में बदल गई प्रदर्शन की परिपाटी
श्रीराम लीला की जब स्थापना हुई, तब और आज के भारत में बहुत अंतर है। समिति के वयोवृद्ध सदस्यों की माने तो उस समय मंच की व्यवस्था नहीं थी, तब बांस-बल्लियों की सहायता से मंच बनाया जाता था। प्रकाश के लिए मशालों की मदद ली जाती थी। प्रचार-प्रसार भी डोंडी पीटकर किया जाता था। कलाकार एक दूसरे का मेकअप कोयले, चंदन, मिट्टी की सहायता से करते थे। भूमि पर बैठने के लिए दर्शक अपने साथ दरी एवं चटाई साथ लाते थे। समय बदला तो मंच भी स्थाई रूप से तैयार हो गया है। कलाकारों का मेकअप पहले वाटर कलर, अब स्किन फ्रेंडली कलर से किया जाता है। प्रचार के लिए सोशल मीडिया सिद्ध सहयोगी बन चुका है। बैक ग्राउंड के लिए पहले पर्दों का प्रयोग शुरू हुआ, अब विशाल एलईडी स्क्रीन दर्शकों का ध्यान खींचती है। मंडल प्रवक्ता, सह निर्देशक एवं नाट्य कलाकार ऋषभ स्थापक ने बताया, “निजी चैनल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतियोगिता में छिंदवाड़ा की रामलीला को मप्र की प्रथम और देश की सर्वश्रेष्ठ रामलीला का सम्मान मिला है।”
श्रीराम लीला की जब स्थापना हुई, तब और आज के भारत में बहुत अंतर है। समिति के वयोवृद्ध सदस्यों की माने तो उस समय मंच की व्यवस्था नहीं थी, तब बांस-बल्लियों की सहायता से मंच बनाया जाता था। प्रकाश के लिए मशालों की मदद ली जाती थी। प्रचार-प्रसार भी डोंडी पीटकर किया जाता था। कलाकार एक दूसरे का मेकअप कोयले, चंदन, मिट्टी की सहायता से करते थे। भूमि पर बैठने के लिए दर्शक अपने साथ दरी एवं चटाई साथ लाते थे। समय बदला तो मंच भी स्थाई रूप से तैयार हो गया है। कलाकारों का मेकअप पहले वाटर कलर, अब स्किन फ्रेंडली कलर से किया जाता है। प्रचार के लिए सोशल मीडिया सिद्ध सहयोगी बन चुका है। बैक ग्राउंड के लिए पहले पर्दों का प्रयोग शुरू हुआ, अब विशाल एलईडी स्क्रीन दर्शकों का ध्यान खींचती है। मंडल प्रवक्ता, सह निर्देशक एवं नाट्य कलाकार ऋषभ स्थापक ने बताया, “निजी चैनल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतियोगिता में छिंदवाड़ा की रामलीला को मप्र की प्रथम और देश की सर्वश्रेष्ठ रामलीला का सम्मान मिला है।”