मध्यप्रदेश नगरपालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 53(3) के तहत निगम के सम्मिलन का कार्यवृत्त आयुक्त द्वारा महापौर, अध्यक्ष तथा प्रत्येक पार्षद को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। अधिनियम में उल्लेख किया गया है कि आयुक्त द्वारा सम्मिलन की कार्यवृत्त राज्य सरकार को भेजी जाएगी और एक प्रतिलिपि निगम के सूचना फलक पर चस्पा की जाएगी, लेकिन निगम प्रशासन अधिनियम की अनदेखी कर पारदर्शिता पर परदा डाल रहा है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि कार्यवृत्त के लिए नेता प्रतिपक्ष को सूचना का अधिकार का सहारा लेना पड़ रहा है।
12 मार्च 2018 को बजट पर चर्चा के लिए परिषद का साधारण सम्मिलन हुआ था, लेकिन १५ दिन बाद तक कार्यवाही की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। निगम सचिव का तर्क भी हास्यास्पद लगता है कि परिषद की कार्यवाही प्रोसेडिंग रजिस्टर में नहीं लिखी जा सकी है। आखिर अब तक कार्यवाही प्रोसेडिंग रजिस्टर में क्यों नहीं लिखी गई? लेटलतीफी पर जिम्मेदार अधिकारी क्या कर रहे हैं? कार्यवृत्त में ऐसा क्या है कि सार्वजनिक नहीं किया जा रहा? निगम में पार्षद जनता के प्रतिनिधि होते हैं। मानस ने इनके कंधों पर जन समस्या के समाधान और शहर के विकास की जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे में जनता को बजट की कार्यवृत्त से वंचित रखना लोकतंत्र का मजाक उड़ाना है।
छिंदवाड़ा में लगातार निगम अधिनियम 1956 की अनदेखी की जा रही है। मध्यप्रदेश नगरपालिक निगम अधिनियम 1956 की धारा 27 के तहत निगम के कामकाम के सुचारू संचालन के लिए प्रत्येक दो माह में कम से कम एक बार सम्मिलन कराने का प्रावधान है। साथ ही मेयर इन काउंसिल सहित गठित की गईं सभी समितियों की बैठक हर माह कराना अनिवार्य है, पर नगर निगम नियम का पालन नहीं कर रहा। विपक्ष और जनता की मांग को अनसुना किया जा रहा। शहर सरकार के बेहतर संचालन के लिए पक्ष और विपक्ष एक मंच पर नहीं आ रहे। निगम के कामकाज और शहर के विकास पर मंथन नहीं हो रहा। ऐसे में सरकार और निगम प्रशासन दोनों की छवि धूमिल हो रही है।