पत्रिका का आव्हान
पत्रिका द्वारा 77वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘एक दिन खादी के नाम’ अभियान चलाया जा रहा है। यह दिन हम उन हस्तशिल्पियों और बुनकरों को समर्पित करना चाहते हैं जिनके हाथ चरखा चलाकर सूत कातते हैं। पत्रिका सभी से आव्हान करती है कि 15 अगस्त को आइए हम सभी खादी के बनें कपड़े पहने और स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हों। आप हमें खादी कपड़ा पहनकर सेल्फी भी भेजें। चुनिंदा फोटो हम पत्रिका में प्रकाशित करेंगे।
पत्रिका द्वारा 77वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘एक दिन खादी के नाम’ अभियान चलाया जा रहा है। यह दिन हम उन हस्तशिल्पियों और बुनकरों को समर्पित करना चाहते हैं जिनके हाथ चरखा चलाकर सूत कातते हैं। पत्रिका सभी से आव्हान करती है कि 15 अगस्त को आइए हम सभी खादी के बनें कपड़े पहने और स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हों। आप हमें खादी कपड़ा पहनकर सेल्फी भी भेजें। चुनिंदा फोटो हम पत्रिका में प्रकाशित करेंगे।
खादी स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक ही नहीं, बल्कि सच्चा भारतीय होने की पहचान है। मैं अक्सर खादी के वस्त्र पहनता हूं। लोगों से अपील करता हूं कि वह भी खादी के वस्त्र पहना करें। आजादी के समय भारतीय खादी ग्राम उद्योग ने अंग्रेजी कपड़ा उद्योग को पराजित किया था। यह बात हमें हमेशा याद रखना चाहिए।
वेद प्रकाश तिवारी, प्राचार्य, सतपुड़ा लॉ कॉलेज
वेद प्रकाश तिवारी, प्राचार्य, सतपुड़ा लॉ कॉलेज
स्वतंत्रता दिवस और खादी दोनों शब्द अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। खादी आंदोलन के बिना आजादी असंभव थी, लेकिन आज आजादी के बाद हम खादी के महत्व को भूलते जा रहे हैं। आधुनिकीकरण के युग में खादी की प्रासंगिकता शून्य हो चुकी है। युवा वर्ग को खादी के महत्व को समझना चाहिए।
धीरेद्र दुबे, साहित्यकार
खादी हमारा सम्मान और स्वाभिमान भी है। अगर हम इसके महत्व को समझते हैं तभी स्वतंत्रता के मायने सार्थक होंगे। खादी का महत्व बताने के लिए स्कूल में बच्चों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम के पहले से आज तक खादी राष्ट्रीयता की पहचान है। खादी को हमेशा महत्व देना चाहिए और इसे बढ़ावा देना चाहिए।मोहिता जगदेव, कवियत्री
खादी हमारा सम्मान और स्वाभिमान भी है। राष्ट्रीयता और ओजस्विता की प्रतीक खादी हमारी स्वतंत्रता का श्रेष्ठ भान कराती है। हमारा कर्तव्य है हम 15 अगस्त पर खादी के वस्त्रों को पहने और देश के ग्रामीण उद्योग को प्रोत्साहन दें। भारत माता के जयकारे के साथ खादी के वस्त्रों के अधिक से अधिक उपयोग को अपना नारा बनाए।विजय आनंद दुबे, वरिष्ठ रंगकर्मी