मजदूरी के लिए भेजना चाहते थे परिजन
अमर के पिता मजदूरी करते थे। वर्ष 2007 में परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वे अमर को आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे। हालांकि अमर ने जीवन का महत्व समझा और संस्था की मदद से परिजनों को पढऩे के लिए मना लिया। इसके बाद अमर ने हायर सेकंडरी तक की पढ़ाई ग्राम के ही शासकीय शाला से पूर्ण की। इसके बाद स्नातक की शिक्षा क्षेत्र के निजी कॉलेज और स्नातकोत्तर की शिक्षा इग्नू से पूर्ण की। उसने प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा भी किया है। इसके बाद अमर विभिन्न प्रदेशों में गए और प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी क्षमता में वृद्धि करते रहे। उन्होंने सामाजिक संस्था के सहयोग से बैंगलोर में कम्प्यूटर और अंग्रेजी का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। इसके बाद वे अंग्रेजी को समझने और बोलने लगे। ग्राम के एक निजी प्राथमिक शाला में शिक्षक के तौर पर पढ़ाने लगे।
रेलवे के सदस्य भी हैं अमर
अमर ने मेहनत और लगन से कई क्षेत्रों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। रेलवे सलाहकार समिति का सदस्य के रूप में भी वो जिले में रेल सुविधाओं के विस्तार और दिव्यांगजनों को रेल यात्रा में बेहतर सुविधा मिले इसके लिए समय-समय पर रेलवे के उच्च अधिकारियों को सुझाव देते हैं। अमर ने बताया कि उसका जीवन बदलने में ग्रामीण आदिवासी समाज विकास संस्थान की अहम भूमिका है। संस्था के मार्गदर्शन और सहयोग से जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा मिली। जीवन को दिशा मिली। वर्तमान में अमर महाराष्ट्र के जलगांव की एक संस्था में कम्प्यूटर शिक्षक के रूप में दृष्टिबाधित दिव्यांग युवाओं को पढ़ा रहे हैं।
अमर ने मेहनत और लगन से कई क्षेत्रों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। रेलवे सलाहकार समिति का सदस्य के रूप में भी वो जिले में रेल सुविधाओं के विस्तार और दिव्यांगजनों को रेल यात्रा में बेहतर सुविधा मिले इसके लिए समय-समय पर रेलवे के उच्च अधिकारियों को सुझाव देते हैं। अमर ने बताया कि उसका जीवन बदलने में ग्रामीण आदिवासी समाज विकास संस्थान की अहम भूमिका है। संस्था के मार्गदर्शन और सहयोग से जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा मिली। जीवन को दिशा मिली। वर्तमान में अमर महाराष्ट्र के जलगांव की एक संस्था में कम्प्यूटर शिक्षक के रूप में दृष्टिबाधित दिव्यांग युवाओं को पढ़ा रहे हैं।