छिंदवाड़ा. शासकीय कॉलेज चांद में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई द्वारा ‘महिला सशक्तिकरण’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संबोधित करते हुए प्रो. अमर सिंह ने कहा कि 21वीं सदी की नारी को स्वयं को साबित करने के अवसर व जमीन की तलाश है। आज उसे सुरक्षिता से हटकर स्वरक्षिता के रूप में प्रस्तुत करना होगा। महिला में भावुकता के आवरण के नीचे तमाम ऊर्जा का शक्तिपुंज है, जिसे रचनात्मक दिशा देकर वह स्वयं को दिव्य, चमत्कारी और अद्भुत सिद्ध कर सकती है। मौत की गोद में बैठकर जो पुरुष को जन्म दे, वह कमजोर कैसे हो सकती है। नारी के लिए इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। वह किसी खैरात की भूखी नहीं है। प्रो. डीके गुप्ता ने कहा कि स्त्री के जिंदा रहते उसके अंदर की संभावनाओं का मर जाना घोर पाप है। वह गुलाब की मोहताज नहीं, बल्कि कायनात की बागवान है। प्रो. आरके पहाड़े ने कहा कि नारी पर बंदिशों का सैलाव ईश्वरीय रचना सत्ता का निकृष्टतम अपमान है। जिस घर को स्त्री ताउम्र सजाए, वहीं उसके नाम की तख्ती न टगे, यह सामाजिक समानता के सिद्धांत का खोखला ढोंग है। प्रो. रजनी कवरेती ने कहा कि स्त्री मनुष्यता के टूटे विश्वास को जोड़ती है, अपने आगोश में समूचे ब्रह्मांड का वात्सल्य समेटे रहती है। प्रो. जीएल विश्वकर्मा ने कहा कि स्त्री मानवीय रिश्तों की सदाबहार नदी है। नारी संवेदनाओं से जीवन की फसल सींचती है और घर की विश्वास की ड्योढी पर ईश्वरीय सत्ता की प्रतिनिधि विभूषित अलंकरण है। प्रो. विनोद शेंडे ने नारी को अपराजिता कहा। प्रो. रक्षा उपश्याम ने स्त्री को मानवीय मूल्यों की रक्षक बताया। संगोष्ठी में काफी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।