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छतरपुर

महिलाओं के समूह ने बदल दी बंजर जमीन की तस्वीर, रोजगार मिला, अब सम्मान भी मिल रहा

महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने महिला सशक्तिकरण की दिशा में स्व-सहायता समूह बड़े मॉडल के रूप में विकसित हो रहे है।

छतरपुरOct 05, 2024 / 10:25 am

Dharmendra Singh

fruit park

फ्रू ट फारेस्ट का ड्रोन फोटो

छतरपुर. महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने महिला सशक्तिकरण की दिशा में स्व-सहायता समूह बड़े मॉडल के रूप में विकसित हो रहे है। छतरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम खोंप में 6 एकड़ की भूमि पर जापान की मियावाकी पद्धति से फ्रूट पार्क तैयार किया गया है। जो पूरे देश में नया उदाहरण बना है। जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मन की बात में कर चुके हैं। फ्रूट पार्क का संचालन और देखरेख ग्राम के ही 10 सदस्यीय महिला स्वसहायता समूह हरि बगिया द्वारा की जा रही है। फ्रूट पार्क में अमरूद, जामुन, नींबू, कटहल, मुनगा इत्यादि पौधों को रोपा गया था। जो अब फल फूल रहे हैं। सफलता की इस कहानी पर पत्रिका ने समूह की अध्यक्ष कौशल्या से विभिन्न मुद्दों पर बात की।

चंदेलकालीन तालाब की गाद से बंजर जमीन बन गई उपजाऊ


समूह की अध्यक्ष कौशल्या बताती है कि ग्राम में महिलाओं के लिए रोजगार के कोई साधन नहीं थे, न कोई विकल्प। फिर गांव में एक दिन कलेक्टर का आना हुआ और उन्होंने हमें एक समूह बनाने का सुझाव दिया और गांव में जमीन पर अवैध अतिक्रमण को हटा कर फ्रूट फॉरेस्ट लगाने के लिए हमें सौंप दिया। इसके बाद मनरेगा योजना से हमें अच्छी क्वालिटी के पौधे मिले। हम सभी महिलाओं के पास खुद को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने का यह शायद आखिर मौका था। हम सभी ने इस काम में जुट कर फलों के पौधों का एक बड़ा उद्यान खड़ा कर दिया। पर जमीन तो बंजर थी। फिर तालाब की गाद खोद कर अपने पौधे में डाली जो पौधों के लिए बिल्कुल अमृत के समान थी। जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ गई और पौधों की ग्रोथ में वृद्धि हुई। फिर कुछ दिनों में फल आना शुरू हुई। जिससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ गया। फिर अपनी आय को दोगुना करने के लिए सब्जियों को लगाया। जिनमें देशी खाद और जीवामृत डाला ताकि सब्जियां पूरी तरह से ऑर्गेनिक रहे। उन्होंने बताया कि दिल्ली से नीति आयोग को टीम द्वारा दो बार भ्रमण किया गया और जिले के अधिकारी भी फ्रूट पार्क देखने आने लगे। सभी हमें जरूरी मार्गदर्शन मिलता रहा। इसी का परिणाम है

सब्जियों को ऑर्गेनिक बनाने जीवामृत का प्रयोग


कौशल्या का कहना है कि समूह फ्रूट पार्क के पौधो की अच्छी ग्रोथ के लिए देशी खाद जीवामृत का प्रयोग किया जाता है। जिसे समूह की ही महिलाओं द्वारा तैयार किया जाता है। इसके अलावा पांच पत्ती खाद एवं बर्मीकम्पोस्ट भी बनाया जाता है। पौधो की सिंचाई अटल भू-जल योजना अंतर्गत ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से की जाती है। ग्राम की महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से सशक्त बनने के दिशा में फ्रूट पार्क सार्थक सिद्ध हो रहा है। जिले में फ्रूट पार्क की संख्या निरंतर बढ़ रही है। जो हमारे पर्यावरण की अनुकूलता का भी पर्याय बन रहा है और हमें प्रकृती को करीब से जानने का मौका दे रहा है।

ग्राम पंचायत का मिला पूरा सहयोग


कौशल्या ने बताया कि ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव का पूरा सहयोग मिला। उनके माध्यम से हमारी सब्जियां आंगनबाड़ी में बच्चों के मध्यान्ह भोजन के लिए पहुंचने लगी। जिससे हमारी आय में वृद्धि हुई। साथ ही बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और पोषण के लिए शुद्ध भोजन मिलने लगा। ग्राम के कृषकों ने बताया कि तालाब की गाद के खेतों में इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। गाद के इस्तेमाल से मिट्टी की नमी की मात्रा बढ़ती है, जल स्तर में सुधार होता है और फसल की पैदावार भी बढ़ती है।

क्या है मियावाकी पद्धति


कौशल्या के मुताबिक मियावाकी पद्धति, वनरोपण की एक तकनीक है जिसके ज़रिए छोटे-छोटे इलाकों में तेजी से घने वन बनाए जाते हैं। इस तकनीक को जापानी वैज्ञानिक डॉ अकीरा मियावाकी ने विकसित किया था। इस पद्धति से लगाए गए बनाए वन, पारंपरिक तरीकों से बनाए गए वनों की तुलना में 30 गुना ज़्यादा घने होते हैं, जो 2-3 साल में ही आत्मनिर्भर हो जाते हैं और इन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलती है।

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