इस साल तीन से चार बार आई आपदा
जिले में बारिश के साथ 4 बार अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से फसल प्रभावित हुई। इससे जिले के 42 गांव प्रभावित भी हुए।लेकिन सरकारी दावे के अनुसार ओलावृष्टि और अति वर्षा से किसानों को 24 फीसदी से कम क्षति हुई है, तो वे क्षतिपूर्ति के हकदार नहीं होंगे। ऐसे में राहत राशि के नियम के दाव – पेंच के चलते जिले के एक भी किसान को ओलावृष्टि का मुआवजा नहीं मिलेगा। जिले में फरवरी-मार्च में बेमौसम बारिश के साथ ओले की बरसात होने से किसानों की फसल चौपट होने के बाद भी प्रशासन के डिटेल सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए है। भू-अभिलेख की जानकारी के अनुसार प्रशासन के डिटेल सर्वे जिले का एक भी किसान राहत राशि के लिए पात्र नहीं पाया गया है। अधीक्षक का कहना है कि डिटेल सर्वे में 24 फीसदी से कम नुकसानी पाए जाने के कारण शासन से राहत राशि की डिमांड नहीं की गई।
पिछले साल जनवरी फरवरी में तीन बार ओलावृष्टि
इस साल जनवरी-फरवरी माह में जिले में तीन बार ओलावृष्टि होने से एक सैकड़ा से अधिक गांवों में किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव की सभाओं के दौरान जिले में ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों को निराश न होने और सर्वे के बाद मुआवजे देने की कई घोषणाएं की थीं, लेकिन वास्तविकता यह है कि जांच में इन गांवों के सर्वे में नुकसान 24 प्रतिशत से कम पाया गया है, इस कारण किसानों को न तो प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के तहत मदद की पात्रता है और न ही फसल बीमा मिला।
130 गांव में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि
जिले के किसानों को प्राकृतिक आपदा की राशि मिलने की राह आसान नहीं है। वर्ष 2019 में अतिवृष्टि से खराब हुई खरीफ सीजन की सोयाबीन, उड़द की फसल के मुआवजा की राशि अब तक सभी किसानों को नहीं मिल पाई है। वर्ष 2022 में जनवरी के दूसरे सप्ताह में छतरपुर जिले के लगभग 130 गांव में ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से फसलों के नुकसान के एवज में मुआवजा का मांग पत्र अबतक शासन को नहीं भेजा गया है। न मुआवजे के संबंध में भी राज्य शासन से अब तक कोई लिखित निर्देश नहीं आया है। जिले में सर्वे टीमों ने 9 तहसीलों के 130 गांवों में 18 हजार 570 हेक्टेयर में फसल का नुकसान मिला । लेकिन फाइनल रिपोर्ट में नुकसान का प्रतिशत 15 से 20 प्रतिशत तक ही रहा। जिससे राहत राशि नहीं मिल पाई।
35 फीसदी से कम हानि फसल बीमा का लाभ नहीं
किसानों पर कुदरत का कहर बरतने के बाद भी किसानों की राहत राशि कानूनी दांव पेंच में फंस गई है। जानकारी के अनुसार पीएम फसल बीमा जन में 35 फीसदी से अधिक नुकसानी पर ही किसानों को क्षतिपूर्ति दिए जाने का प्रावधान निर्धारित किया गया है। ऐसे में जिले के किसान आरबीसी और बीमा योजना के नियम कायदों के भंवर जाल में फंसकर दो से वंचित हो गए हैं।
ये कवर नहीं होता
प्राकृतिक आपदा में गेहूं, चना, मसूर, सरसों, लहसुन, मेथी, मटर समेत सभी प्रकार की फसल और सब्जियां कवर होती है। किसान नेता प्रेम नारायण मिश्रा कहते हैं कि सरकार की कथनी और करनी में यही अंतर किसान को रुला रहा है। जब ओले गिर रहे थे तो अधिकारी भी कहते थे, कि चिंता मत करो, सर्वे रिपोर्ट अच्छी बनाएंगे, मुआवजा जरूर मिलेगा, फिर बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सर्वे रिपोर्ट कमजोर कर किसान की अनसुनी कर दी जाती है।
इनका कहना है
ओलावृष्टि से फसल नुकसानी का तीन बार डिटेल सर्वे कराया गया है। डिटेल सर्वे में 24 फीसदी से अधिक फसल नुकसानी नहीं पाई गई है। इसके चलते जिले का एक भी किसान राहत राशि के लिए पात्र नहीं पाया गया है। इसी वजह से शासन से राहत राशि की डिमांड नहीं की गई है।
आदित्य सोनकिया, अधीक्षक, भू-अभिलेख
ओलावृष्टि से फसल नुकसानी का तीन बार डिटेल सर्वे कराया गया है। डिटेल सर्वे में 24 फीसदी से अधिक फसल नुकसानी नहीं पाई गई है। इसके चलते जिले का एक भी किसान राहत राशि के लिए पात्र नहीं पाया गया है। इसी वजह से शासन से राहत राशि की डिमांड नहीं की गई है।
आदित्य सोनकिया, अधीक्षक, भू-अभिलेख