छतरपुर

मां को रिक्शे पर लेकर तीर्थ कराने निकल पड़ा बेटा

– सागर के संत करीब वार्ड में रहने वाले मुरारीलाल कोरी बने श्रवण- 23 दिन में मैहर से लेकर चित्रकूट तक कर डाली रिक्शे पर यात्रा

छतरपुरAug 09, 2021 / 10:23 am

deepak deewan

Shravan Kumar Chhatarpur Shravan Kumar MP Shravan Kumar

छतरपुर। पौराणिक कथाओं में माता-पिता के अनन्य भक्त श्रवण कुमार की कहानी आप ने कई बार सुनी होगी। श्रवण कुमार माता-पिता को तीर्थ कराने के लिए एक पालकी में दोनों को बैठाकर निकल पड़े थे। कलयुग में भी एक ऐसे ही बेटे ने श्रवण कुमार का फर्ज निभाया। सागर के संत करीब वार्ड में रहने वाले मुरारीलाल कोरी मां की ट्राइसाइकिल को अपनी साइकिल से जोड़कर रिक्शा बना लिया और मां को बिठाकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े हैं। मैहर- चित्रकूट ले लौटते समय 80 वर्षीय बुजुर्ग मां प्रेम रानी के साथ छतरपुर नगर से गुजरे।

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दिलचस्प यह है कि बेटा मुरारीलाल ने साइकिल से जुगाड़ का रिक्शा बना लिया है। इस रिक्शे में पीछे बुजुर्ग मां बैठी है। यह नजारा वर्तमान की इस पीढ़ी के लिए बहुत प्रेरणास्पद है जो माता-पिता की सेवा करना भूल रहे हैं। मुरारीलाल ने बताया कि वह 3 भाइयों में सबसे छोटा है। दो भाइयों का विवाह हो चुका है और वह अविवाहित है। मां बुजुर्ग हो चुकी है। उनकी इच्छा थी कि वे मंदिरों में जाकर भगवान के दर्शन करें। इस इच्छा को पूरा करने के लिए पेशे से मजदूर मुरारीलाल के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे इसलिए उसने अपनी ही साइकिल के पीछे एक कबाड़ी से खरीदे गए दिव्यांगों की ट्राई साइकिल के पिछले हिस्से को बेल्डिंग के जरिए जोड़ लिया और मां को इसी रिक्शे में बैठाकर 23 दिन पहले घर से निकले थे।

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अबार माता मंदिर से शुरूआत

मुरारी ने बताया कि वह सबसे पहले अबार माता मंदिर पहुंचा। इसके बाद मैहर, चित्रकूट होते हुए घर वापस जा रहा है। मुरारी ने बताया कि मां और बेटे अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर चल रहे थे। जहां रात हो जाती थी, वहीं किसी मंदिर, धर्मशाला में रूक जाते थे। अगले दिन सुबह फिर निकल पड़ते हैं। खाने-पीने का कुछ सामान राह चलते लोग दे देते थे। बेटे की इस सेवा से मां का हृदय भी द्रवित नजर आया। मां प्रेम रानी ने कहा कि श्रवण कुमार जैसा बेटा पाकर खुद को सौभाग्यशाली मानते हुए अभिभूत है।

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