आखिर कैसे मिली अनुमति
डीजी मिनिरल्स को लवकुशनगर के खसरा क्रमांक 593 में लगभग 11.85 हेक्टेयर की ग्रेनाइट खदान तीन हिस्सों में एक ही तारीख में स्वीकृत हुई। लेकिन सबसे बड़ा रहस्य यह है कि कंपनी को डिया की अनुमति कैसे हासिल हो गई। दरअसल डिया की अनुमति के लिए निर्धारित पूर्व नियम के अनुसार खदान से आधा किमी की दूरी तक रिहायशी क्षेत्र, स्कूल, कॉलेज, श्मशान घाट, मंदिर वगैरह नहीं होना चाहिए और नए नियम के अनुसार 200 मीटर तक उत्खनन प्रतिबंधित है। लेकिन इस खदान से 200 मीटर से कम दूरी पर चारों ओर पांच स्कूल कॉलेज, मंदिर, श्मशान घाट व तालाब आदि स्थित हैं।
40 साल पुराने डिग्री कॉलेज व स्कूल
जिस शासकीय खसरा नंबर में 40 साल पुराना डिग्री कॉलेज, गल्र्स व बालक हायरसेंकडरी स्कूल बने हैं, उसी खसरा नबंर में उत्खनन की लीज दे दी गई। इसके अलावा लीज नियमों को दरकिनार करने के साथ ही कंपनी स्वीकृत खदान एरिया के बाहर भी उत्खनन कर रही है। पहाड़ में लगे सैकड़ो की संख्या में हरे भरे वृक्षो को नष्ट कर दिया, लेकिन नियमानुसा एक भी पेड़ नया नही लगाया गया। अब पहाड़ी वीरान नजर आने लगी है।
भोपाल एनजीटी को कई बार की गई शिकायत
भोपाल एनजीटी में शिकायत करने वाले प्रवीण रिछारिया ने बताया कि जिस पहाड़ पर लीज स्वीकृत की है उसके आसपास घनी बस्ती है साथ ही शासकीय महाविद्यालय, उत्कृष्ट शाला,शमशान घाट और शासकीय छात्रावास स्थित है, फिर भी डीजी मिनरल्स को लीज दे दी गई। शहर के बीचो-बीच स्थित पहाड़ की लीज स्वीकृत कर दी गई। कंपनी को खसरा क्रमांक 593 कुल रकवा 42 हेक्टेयर में से 11.85 हेक्टेयर पत्थर खनन के लिए लीज आवंटित की गई थी। लेकिन इसी पहाड़ से सटे अन्य खसरा नंबर 2206 व 2207 में अवैध तरीके से पत्थर खनन किया जा रहा है। इसकी शिकायत कई बार की गई लेकि न कार्रवाई नहीं हुई है।
शासकीय कॉलेज के प्राचार्य ने कई बार जताई आपत्ति
डीजी मिनरल्स को जिस पहाड़ पर लीज मिली है और पत्थर का खनन किया जा रहा है उसी खसरा नंबर में शासकीय महाविद्यालय स्थित है, पहाड़ पर रोजाना बड़ी -बड़ी मशीने चलने से शोरगुल व पहाड़ की डस्ट से परेशान होकर तात्कालीन प्राचार्य अंगद सिंह दोहरे ने शासन को खदान संचालन से आपत्ति जताते हुए इसे बंद करने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन इन पत्रों पर कोई गौर नही किया गया।
इनका कहना है
खदान बंद करने के लिए आवेदन आया था। अभी काम बंद है। क्रशर का संचालन नियम से ही किया जा सकता है। पर्यावरण जनसुनवाई में सभी पहलुओ को देखा जाता है। लोगों की बात भी उसमें आती है।
अमित मिश्रा, सहायक संचालक, खनिज