छतरपुर. वर्ष 2016-17 में जिला अस्पताल में ब्लड सेपरेशन मशीन लाई गई, ताकि ब्लड की प्रत्येक यूनिट का इस्तेमाल चार मरीजों के लिए किया जा सके। डेगूं, पीलिया के मरीजों को प्लेटलेट्स गिरने पर बाहर रेफर न करना पड़े। लेकिन मशीन का पहले सेटअप नहीं बन सका। वर्ष 2023 में ब्लड बैंक प्रभारी बनी डॉ. श्वेता गर्ग ने ब्लड सेपरेशन यूनिट के लाइसेंस की कवायद शुरु की, एक साल की मशक्कत के बाद आखिरकार ब्लड बैंक को सेपरेशन यूनिट का लाइसेंस मिल गया है।
अलग-अलग इस्तेमाल हो पाएंगे कंपोनेंट
प्रत्येक व्यक्ति के ब्लड में चार कंपोनेंट होते हैं, चाहे उसका ब्लड ग्रुप कोई भी हो। इनमें रेड ब्लड सेल (आरबीसी), प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और क्रायोप्रेसीपिटेट शामिल हैं। ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट में इस ब्लड को डालकर घुमाते हुए जाता है। जिससे ब्लड परत दर परत (लेयर बाई लेयर) हो जाता है और आरबीसी, प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और क्रयोप्रेसीपिटेट अलग-अलग हो जाते हैं। यह चारों तत्व अलग-अलग मरीज को उसकी जरूरत के हिसाब से चढ़ाए जा सकते हैं। इस यूनिट के शुरु होने से एक यूनिट ब्लड का उपयोग चार मरीजों के लिए हो सकेगा।
साल भर करना पड़ी मशक्कत
लाइसेंस आसानी से नहीं मिला। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की टीम दो बार यूनिट का निरीक्षण किया। एक साल पहले जिला प्रशासन ने लाइसेंस सबंधी सभी प्रक्रिया पूरी कर दस्तावेज राज्य शासन को भेजे थे। राज्य शासन ने इसकी फाइल ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया (नई दिल्ली) को भेजी थी। अस्पताल प्रबंधन ने करीब पांच माह पहले भी इन दस्तावेजों को भोपाल स्थित लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संचालनालय और ड्रग कंट्रोलर के यहां भेजा था। दिल्ली से आई टीम भी निरीक्षण किया था। पांच महीने तक फाइल अटकाने के बाद अचानक दोबारा दस्तावेज मांगे गए थे। सिविल सर्जन ने कुछ दस्तावेज तत्काल मेल कर दिए थे. लेकिन ड्रग कंट्रोलर संतुष्ट नहीं हुए। इसके बाद ड्रग कंट्रोलर की दो टीमों ने नए सिरे से यूनिट का निरीक्षण किया था। इस दौरान टीम ने बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, संसाधन, कर्मचारियों की संख्या, स्वीकृत पद जैसी अहम जानकारी मांगी थी। इसके बाद ब्लड बैंक की टीम लगातार फॉलोअप करती रही, तब जाकर मिला लाइसेंस
कलेक्टर ने भी किया फॉलो
यूनिट के लिए लाइसेंस जारी करवाने में कलेक्टर संदीप जीआर की अहम भूमिका रही। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की टीम दो बार निरीक्षण कर चुकी थी। इसके बाद भी लाइसेंस जारी नहीं हो पा रहा था। इसके चलते कलेक्टर ने 6 पत्र भेजे। साथ ही उच्च अधिकारियों के लगातार संपर्क में रहे, तब कहीं जाकर लाइसेंस जारी हो सका है। कलेक्टर ने बताया कि मशीनों की टेस्टिंग और व्यवस्थाएं अपडेट हो गई हैं।
इनका कहना है
थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों को पैक्ड रेड ब्लड सेल देने होते हैं। पूरा ब्लड चढ़ाने से तित्ली बढ़ जाती है, जो बहुत परेशान करती है। कॉम्पोनेंटस बनने से उनको सुविधा मिलेगी।
डॉ. श्वेता गर्ग, ब्लड बैंक प्रभारी