एक्सप्लोरेशन के दौरान बक्सवाहा के जंगल में जमीन के नीचे साढ़े तीन करोड़ कैरेट से ज्यादा के हीरे होने की जानकारी मिली है। हीरों की अनुमानित कीमत 60 से 70 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है। खदान की नीलामी एक बार हो चुकी है, लेकिन विरोध और हाईकोर्ट एवं एनजीटी में याचिकाओं के चलते संबंधित कंपनी ने लीज सरेंडर कर दी। इसलिए खनिज संसाधन विभाग सबसे पहले हाईकोर्ट से स्टे हटवाने की तैयारी कर रहा है।
नहीं कटेंगे लाखों पेड़, वन्य जीव भी सुरक्षित
अधिकारियों के अनुसार लोगों को गलतफहमी हो गई थी कि 364 हेक्टेयर क्षेत्र की लीज दी गई तो पूरे में खुदाई होगी और लाखों पेड़ कटेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। अब खुदाई की आधुनिक तकनीकें आ गई हैं। ज्यादा से ज्यादा एक फुटबॉल ग्राउंड के बराबर जमीन पर ही खुदाई होती है। इससे न तो ज्यादा पेड़ कटते हैं और न वन्य जीवों को नुकसान होता है। जितने पेड़ कटते हैं उसके 10 गुने पेड़ लगवाए जाते हैं और उनकी पूरी देखरेख की जाती है। इतनी कम जगह का इस्तेमाल होने के चलते शैलचित्रों को भी किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से पर्यावरणीय अनुमति भी लेना अनिवार्य है। जिसे लीज मिलेगी वह ईसी के बिना काम शुरू नहीं कर पाएगा। उसमें मंत्रालय की टीम पर्यावरण का पूरा आकलन करती है और अनुमति के साथ शर्तें भी लगाती है।
शुरू नहीं हुआ काम
2019 में सरकार ने नीलामी प्रक्रिया की थी। इसमें आदित्य बिरला ग्रुप की एसेल माइनिंग कंपनी ने लीज हासिल की थी। कंपनी को 50 साल के पट्टे पर लगभग 364 हेक्टेयर जमीन मिली थी। खुदाई शुरू हो पाती उसके पहले पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। बता दें कि 5 साल पहले 2019 में आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाकर माइनिंग लीज ली थी। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया गया है।
यहीं पर खदान बनाई जाएगी लेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा, ताकि 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जा सके। तब इस काम में कंपनी 2500 करोड़ रुपए खर्च करने की तैयारी की थी।
24 साल पहले शुरू किया गया था सर्वे
बता दें कि छतरपुर के इस जंगल में 24 साल पहले 2000 में बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत सर्वे शुरू किया गया था। यह सर्वे आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने किया था। 2000 से 2005 के बीच इस कंपनी ने जंगल में सर्वे कराया था। बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा की खोज के लिए शुरू किए गए सर्वे के दौरान एक दिन सर्वे टीम के सदस्यों के चेहरे खुशी से खिल गए। दरअसल सर्वे टीम को यहां नाले के किनारे किंबरलाइट पत्थर की चट्टान नजर आई थी। और खुशी की बात ये थी कि हीरा इसी किंबरलाइट की चट्टान में पाया जाता है। बता दें कि सर्वे करने वाली इसी आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने खनन लीज के लिए आवेदन भी किया था। लेकिन मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिंटो ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था।
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