भारत में 2018 के सर्वे के अनुसार 0-18 साल की उम्र के करीब 50 लाख बच्चे स्कोलियोसिस से पीड़ित हैं। स्कोलियोसिस (रीढ़ में असामान्य वक्रता) का यदि इलाज नहीं किया जाएं तो इससे फेफड़े का रोग होता है। इससे जीवन की प्रत्याशा कम हो जाती है। भारत में ऐसे 60 प्रतिशत से अधिक बच्चों का इलाज नहीं हो पाता। दरअसल स्कोलियोसिस रीढ़ में वक्रता की स्थिति होती है बच्चों में किसी भी उम्र में विकसित हो सकती है। यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया जाए तो चलने में कठिनाई के साथ साथ कोई काम करने पर पीठ में गंभीर दर्द होता है। इससे जीवन की गुणवत्ता खराब हो जाती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार इसका सबसे बड़ा कारण परिवार की खराब सामाजिक आर्थिक स्थिति एवं जागरूकता का अभाव है।
वीएचएस चेन्नई के स्पाइन सर्जन डा.विग्नेश पुष्पराज ने बताया कि हमने एक 15 साल की लड़की का सफल इलाज किया है। वह पिछले कई सालों से स्कोलियोसिस से पीड़ित थी। कुछ समय पहले उसमें कुबड़ा विकसित हो गया। स्थिति इतनी खराब हुई कि वह सीधे सोने, आराम से चलने फिरने और यहां तक की सांस लेने की समस्या से जूझने लगी। कई सलाह के बाद भी उसकी सर्जरी नहीं की गई क्योंकि की लोवर लिम्ब में पक्षाघात की संभावना का डर था। वीएचएस में आने के बाद उसकी जांच की गई। इसके बाद सर्जरी का फैसला लिया गया। सर्जरी सफल रही और दो दिन बाद ही वह सामान्य रूप से चलने फिरने लगी।
उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी में रीढ़ में वक्रता की वृद्धि को कम करने के लिए अक्सर ब्रेसिंग पद्धति का प्रयोग किया जाता है। कई मामलों में रोगी को ब्रेस पहनने को कहा जाता है ताकि रीढ़ का पोस्चर ठीक हो। लेकिन इस रोगी के मामले में विकृति की गंभीरता के कारण ब्रेस विकल्प नहीं था। इस कारण सर्वाधिक एडवांस टेक्नालाजी का उपयोग किया गया। इसके साथ ही हास्पिटल ने स्कोलियोसिस का निशुल्क इलाज करना शुरू किया है।