सीईएस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण का स्तर नापने के लिए वैश्विक नियम अपनाए गए ताकि सटीक विश्लेषण सामने आ सके। रिपोर्ट के अनुसार 24 घंटों में से अगर 8 घंटों का औसत देखें, तो दिल्ली-एनसीआर और अहमदाबाद में कम से कम एक ऑब्जर्वेशन स्टेशन में लॉकडाउन अवधि के दो तिहाई वक्त में ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक रहा। वहीं, उत्तर प्रदेश के नोएडा में 12 दिनों तक ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक रहा और एक ऑब्जर्वेशन स्टेशन पर 42 दिनों तक प्रदूषण मानक से ज्यादा दर्ज किया गया। इसी तरह कोलकाता, दिल्ली और अन्य शहरों में ओजोन प्रदूषण तयशुदा मानक से अधिक रहा।
आंकड़ों की अवधि पर सवाल
सीएसई की रिपोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से रोजाना वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) बुलेटिन पर सवाल किया गया है। प्रतिदिन की रिपोर्ट में सभी दूसरे प्रदूषकों की मात्रा में गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन ओजोन में प्रदूषण की कमी के बावजूद कई शहरों में इसकी मात्रा दूसरे प्रदूषक तत्वों से ज्यादा थी और सूचकांक में यह शीर्ष पर बना रही। अध्ययन कहता है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तयशुदा रात आठ बजे से शाम चार बजे के बीच आंकड़े लेता है। इस वक्त प्रदूषण खराब स्तर पर नहीं हो सकता है।
प्रदूषण कम करने के सुझाव
आपदा के चलते वायु गुणवत्ता में आए बदलाव ने हमें गर्मी के मौसम में होने वाले प्रदूषण को समझने में मदद की। सामान्य तौर पर हर साल सर्दी के मौसम में प्रदूषण हमारा ध्यान खींचता है। लेकिन, गर्मी के मौसम में जो प्रदूषण फैलता है, उसका चरित्र अलग होता है। गर्मी में तेज हवाएं चलती हैं, बारिश होती है, आकाशीय बिजलियां गिरती हैं, तापमान अधिक होता है और लू चलती है। सर्दी में इसका उल्टा होता है। इसमें हवा की ऊंचाई कम होती है। आबोहवा में ठंडक होती है, जो हवा और उसमें मौजूद प्रदूषकों को रोक लेती है।
अनुमिता रायचौधरी, कार्यकारी निदेशक, सीएसई (रिसर्च एंड एडवोकेसी)