1960 के दशक में सक्रिय राजनीति में आए बागुन सुम्ब्रई की पहचान सारंडा, कोल्हान और सिंहभूम इलाके में ही, बल्कि पूरे राज्य में आधुनिक राजनीति के महात्मा के रूप में थी। खुला बदन, हल्की-लम्बी दाढ़ी-मूंछ और तमाम आधुनिक सुख-सुविधाओं को नजरअंदाज कर खाली पैर लम्बी दूरी तय करने वाले शख्स बागुन सुम्ब्रई की पहचान कोल्हान के जन-जन से लेकर देशभर में थी। 1924 में पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा के सुदूरवर्ती भूता गांव में एक किसान परिवार में जन्मे बागुन के सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया। बाद में विल्किंग्सन रुल्स के हुकुकनामा के आधार पर उनके पिता के रिक्त स्थान पर उन्हें ग्राम मुंडा चुना गया। ग्राम मुंडा रहने के दौरान उन्होंने चार पीढ़ के 138 गांवों को वर्ष 1945 में फारेस्ट विभाग को एक आना मालगुजारी नहीं देने का आह्वान किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चलाया।
बाद में बागुन सुम्ब्रई ने 1967 में पहली बार झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता। पहला चुनाव सुम्ब्रई ने मात्र 910 रुपये में जीता। वे अपने समर्थकों के साथ साईकिल से पूरे विधानसभा में घूम-घूम कर प्रचार करते थे। चुनाव के अंतिम समय में पैसे के अभाव में उन्होंने अपनी साईकिल 125 रुपये में बंधक रख दी और चुनाव जीतने के छह महीने बाद पैसा देकर साईकिल वापस ली। बाद में वे 1969 व 1972 तथा 2000 में चाईबासा विधानसभा के लिए चुने गए। जबकि 1977 , 1980, 1984, 1989 और 2004 में वे सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए।
प्रारंभ में वे झारखंड पार्टी की टिकट पर पहला चुनाव जीते, लेकिन 1977 में जनता पार्टी के सहयोग से सांसद बने और फिर कांग्रेस में शामिल हो गया और वर्ष 2018 में अपनी मौत के अंतिम क्षण तक कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में बने। हालांकि पिछले वर्ष जब उनका निधन हुआ, तो उससे पहले कई महीने तक वे अस्पताल में ही भर्त्ती रहे। बागुन सुम्ब्रई एकीकृत बिहार में तीन बार मंत्री रहे और झारखंड विधानसभा के पहले उपाध्यक्ष भी रहे।
28 महिलाओं ने सुम्ब्रई को बताया था अपना पति
बागुन सुम्ब्रई को बहुपत्नियों के लिए भी जाना जाता है। वे खुद भी पांच पत्नी होने की बात स्वीकार करते थे, इनमें दशमती सुम्ब्रई, चंद्रवती सुम्ब्रई, पूर्व मंत्री मुक्तिदानी सुम्बई की मृत्यु बागुन सुम्ब्रई के जीवित रहने के दौरान ही हो गयी। वहीं दशमती सुम्बई अंतिम दिनों में उनसे अलग रही और अनिता बलमुचू सुम्बई अंतिम दिनों में भी उनके साथ रही। बहुपत्नियों के आरोप के बावत बागुन सुम्ब्रई ने संवाददाता से एक बार बातचीत में स्वीकार किया था कि उन्होंने वैसी महिलाओं, जो परित्याक्ता, विधवा और सामाजिक प्रताड़ना की शिकार थी, उनके पास आती थी, अपना संरक्षण देते थे और उनकी तमाम आवश्यकताओं को यथासंभव पूरा करते थे। बताया जाता है कि एक बार उनकी बहुपत्नियों का मसला एकीकृत बिहार विधानसभा में उठा, तो उस वक्त एक समिति ने जांच में पाया था कि 28 महिलाओं ने बागुन सुम्ब्रई को अपना पति बताया है।