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जस्टिस एम. नारायनन और आर. हेमलता की बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं हैं। इस याचिका में एनएच4 की खराब हालत के बारे में बताया गया है। जब बेंच ने ठेकेदारों की ओर से होने वाले धीरे काम को लेकर सवाल उठाया, तो सहायक सॉलिसिटर जनरल जी. कार्तिकेयन कहा कि एनएचएआई को राज्य सरकार से बहुत-सी मंजूरी लेनी पड़ती है, जिसके लिए बहुत सी एजेंसियों से संपर्क करना पड़ता है। जिनकी मंजूरी मिलने में टाइम लगता है और ऐसे में NHAI को जिम्मेदारी ठहराना सही नहीं होगा।
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इसके अलावा कोर्ट ने एनएचएआई को भारतीय रोड कांग्रेस के आधार पर सड़कों की हालत ठीक है या नहीं इसका निरीक्षण कर सड़कों के ठीक न होने पर उन्हें दुरूस्त करने की बात कही है। अगर नहीं है तो उसे दुरुस्त किया जाए। वहीं एजेंसिओं की मंजूरी के तर्क पर कोर्ट ने सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम बनाने की बात कही है। ताकि काम जल्दी से हो सके । लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने रोड एक्सीडेंट होने पर nhai को जुर्माने का भुगतान करने की बात दोहराई। यानि भविष्य में अगर ऐसा कुछ भी होता है तो NHAI ही जिम्मेदार होता है।