खासतौर से सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि राजन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क हो जाएगा, लेकिन ये खबरें आ रही हैं कि पीएम मोदी का भरोसा जीतने में राजन कामयाब रहे हैं। राजन को हटाने की मुहिम दिसंबर 2014 में ही शुरू हो गई थी।
जब वित्त मंत्रालय के अधिकारी इस बात से खफा थे आरबीआई गवर्नर ब्याज दरों का कम करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ भाजपा के कई सांसद भी उनके रवैये से हैरान और नाराज थे।
इन सब के बीच पीएम ने वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक बुलाई और साफ कर दिया कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी बंद होनी चाहिए। बताया जाता है कि उस बैठक के बाद राजन और पीएम के बीच एक बेहतर संबंध स्थापित हुआ। इस तरह के संकेतों से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि सितंबर में समाप्त हो रहे राजन के कार्यकाल को एक और मौका मिल सकता है।
पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम का कहना है कि अगर राजन को दूसरे कार्यकाल के लिए हरी झंडी मिलती है तो वे सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे। मायाराम के मुताबिक भारत की 2 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था को राजन अच्छी तरह से समझते हैं।
सरकार के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि राजन के दूसरे कार्यकाल के बारे में पीएम ही फैसला करेंगे। हाल ही एक साक्षात्कार में पीएम ने कहा था कि आरबीआई गवर्नर का कार्यकाल सितंबर में पूरा हो रहा है। दूसरी अवधि के लिए उस वक्त फैसला किया जाएगा। अधिकारियों ने नाम न बताने के शर्त पर कहा कि राजन की कार्यप्रणाली से पीएम खुश हैं। उनके खिलाफ चलाए जा रहे किसी भी अभियान का उन पर असर नहीं होगा।
हालांकि इस मुद्दे पर न तो पीएमओ न ही वित्त मंत्रालय या राजन की तरफ से किसी तरह की टिप्पणी आई है। राजन के सहिष्णुता पर दिए गए बयान के बाद वो भाजपा के कई नेताओं के निशाने पर आ गए थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि राजन को वापस शिकागो भेज देना चाहिए। उनके रहते भारतीय अर्थव्यवस्था का भला नहीं होने वाला है। तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को जब अंधों में काने राजा की संज्ञा दी तो वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने सार्वजनिक तौर पर उनकी जमकर आलोचना की थी।
वहीं, हाल ही पीएम ने राजन की तारीफ करते हुए कहा था कि वो एक बेहतर शिक्षक की तरह जटिल मुद्दों को आसानी से समझा देते हैं। पीएम से मिली तारीफ का जवाब देते हुए राजन ने कहा था कि ये दोनों तरफ से होना चाहिए।
बताया जाता है कि राजन अक्सर दिल्ली आकर पीएम से मिलते हैं, लेकिन इन मुलाकातों को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पीएम-वित्त मंत्री जेटली और राजन के आपसी सामंजस्य की वजह से भारत मैक्रो फ्रंट पर बेहतर कर रहा है। राजन के रहते विदेशी निवेश बढ़ा है। इसके अलावा घरेलू मोर्चे पर बैंकों द्वारा दिए गए कर्जों के मामले में आरबीआई गवर्नर की रणनीति कारगर रही है।