निर्मला सीतारमण ने कहा कि जब 2005 में यह सौदा हुआ था, तब यूपीए की सरकार थी। डील में घोटाला हुआ है। इसे कैंसल करने में यूपीए सरकार को 6 साल लग गए। मामला इतना बढ़ा है कि एक सेंट्रल मिनिस्टर को गिरफ्तार करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि, तत्कालीन यूपीए ने इस सौदे की खबर कैबिनेट को भी नहीं दी। यूपीए की लालच की वजह से मोदी सरकार कई अंतराष्ट्रीय अदालतों में केस लड़ रही है।
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सीतारमण ने कहा कि ये सौदा असल में एक धोखाधड़ी थी। पीएम मोदी की सरकार ने हर अदालत में इस फ्रॉड के खिलाफ लड़ाई की है। इस मामले को देवास आर्बिट्रेटर के पास लेकर गई, लेकिन तब की सरकार ने कभी आर्बिटरेटर अपॉइंट नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 17 जनवरी को दिए अपने फैसले में कहा है कि देवास मल्टीमीडिया को एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जीवाड़े के मकसद से ही बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक देवास भारत में सिर्फ 579 करोड़ रुपए लेकर आई, जबकि 85 फीसदी राशि भारत से बाहर भेज दी गई। इसमें कुछ हिस्सा अमरीका में कुछ सब्सिडियरी को बनाने के लिए भेज दिया गया। कुछ हिस्सा सर्विस और सपोर्ट के लिए भेजा गया। जबकि कुछ हिस्सा कानूनी लड़ाई में खर्च कर दिया गया।
क्या है देवास-एंट्रिक्स डील
ये मामला इसरो की Antrix Corp और देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए एक सैटेलाइट सौदे से जुड़ा है। देवास मल्टीमीडिया और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के बीच साल 2005 में सैटेलाइट सेवा से जुड़ी एक डील हुई थी। बाद में पता चला सैटेलाइट का इस्तेमाल मोबाइल से बातचीत के लिए होना था, लेकिन सरकार की इजाजत नहीं ली गई। देवास को इसरो के ही पूर्व साइंटिफिक सेक्रेटरी एमडी चंद्रशेखर ने बनाया था। इसे 2011 में फर्जीवाड़े के आरोपों को चलते रद्द कर दिया गया।
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डील कैंसल होने के बाद देवास ने भारत सरकार से अपने नुकसान की भरपाई करने की मांग की थी। खिंचता हुआ ये मामला इंटरनेशनल कोर्ट में पहुंच गया। यहां देवास की जीत हुई थी। इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स की कोर्ट ने भारत सरकार से कहा था कि वह देवास को 1.3 बिलियन डॉलर का भुगतान करे। इस रकम की रिकवरी के लिए देवास के विदेशी शेयरहोल्डर्स कनाडा और अमरीका समेत कई देशों में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर कर चुके हैं।
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