– 1861 में छपा था भारत में सबसे पहला वाटर मार्क वाला नोट
– 4200 से ज्यादा चेस्ट यानी मुद्रा तिजोरी हैं देश में
– 2,000 करोड़ करेंसी नोट छापे जाते हैं हर साल भारत में
– 40 फीसदी लागत कागज व स्याही के आयात पर आती है
– पहले सोने के भंडार के आधार पर नोटों की छपाई संख्या तय की जाती थी। 1991 के बाद इसमें बदलाव किया गया है।
– 50 लाख नोट चलन से बाहर हो जाते हैं हर साल। इनका वजन कई टन होता है। 1. विकास दर, मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर, कटे-फटे नोटों की संख्या और रिजर्व स्टॉक की जरूरतों के आधार पर रिजर्व बैंक हर साल छपाई के लिए बैंक नोटों की मात्रा और मूल्य भारत सरकार को बताता है। सरकार इसे अंतिम रूप देती है।
2.
संख्या तय होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक, भारत सरकार के परामर्श से बैंक नोटों के डिजाइन तय करती है।
3. जरूरत का कागज होशंगाबाद की सिक्योरिटी पेपर मिल रिजर्व बैंक को देती है। यह कागज जर्मनी, जापान और ब्रिटेन आदि से आयात किया जाता है। फिलहाल कागज जर्मनी से आया है, जिसे अन्य किसी देश को देने की मनाही है। पहले यही कागज पाकिस्तान में इस्तेमाल होता था।
4.
छपाई की स्याही देवास में तैयार होती है, जो छापेखानों को भेजी जाती है। नोट पर उभरी हुई छपाई के लिए स्याही सिक्किम स्थित स्वीस फर्म की यूनिट सिक्पा में बनाई जाती है। कागज और स्याही मिलने के बाद इस डिजाइन को नासिक, देवास, मैसूर और सालबोनी की चार सरकारी प्रेस छापती हैं।
5.
शीट पर छपे नोटों पर नंबर डाले जाते हैं। फिर नोटों को काटने के बाद एक-एक नोट की जांच की जाती है। फिर इन्हें पैक किया जाता है। पैकिंग के बाद बंडल विशेष सुरक्षा में ट्रेन से भारतीय रिजर्व बैंक के 19 निर्गम कार्यालयों में पहुंचाए जाते हैं। फिर 4200 से ज्यादा चेस्ट यानी मुद्रा तिजोरियों तक नोट पहुंचाए जाते हैं।
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चेस्टों से सरकारी और निजी बैंक और उनके एटीएम तक नोट पहुंचते हैं। 7.
एटीएम और बैंक से नोट उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं। खराब नोट पुन: बैंकों तक आते हैं
बैंक इन्हें रिजर्व बैंक के निर्गम कार्यालय पहुंचाते हैं। निर्गम कार्यालय में ज्यादा खराब नोट नष्ट कर दिए जाते हैं और उनकी संख्या रिजर्व बैंक को बताई जाती है। बाकी को सुधार कर पुन: चलन में भेजा जाता है।