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कमजोर रुपया बढ़ाएगा महंगाई का बोझ! आयात पर बढ़ेगा खर्च, GTRI ने क्या किया खुलासा?

Indian Rupee: भारतीय रुपये की गिरती कीमतों ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था को दबाव में डाल दिया है। GTRI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रुपया पिछले वर्ष 16 जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.71% कमजोर हो चुका है। आइए जानते है पूरी खबर।

नई दिल्लीJan 17, 2025 / 04:10 pm

Ratan Gaurav

Indian Rupee

Indian Rupee: भारतीय रुपये की गिरती कीमतों ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था को दबाव में डाल दिया है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, रुपये में गिरावट का सीधा असर देश के आयात बिल पर पड़ रहा है। इसके चलते महंगाई की दर में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे आम जनता की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
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रुपये की गिरावट और उसका असर (Indian Rupee)

GTRI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रुपया पिछले वर्ष 16 जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.71% कमजोर हो चुका है। यह 82.8 रुपये प्रति डॉलर से गिरकर 86.7 रुपये (Indian Rupee) प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। बीते 10 वर्षों में रुपये की कीमत में कुल 41.3% की गिरावट आई है। इसकी तुलना में, चीनी युआन में केवल 3.24% की गिरावट दर्ज की गई है। इस गिरावट का प्रभाव सबसे ज्यादा कच्चे तेल, कोयला, वनस्पति तेल, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और रसायनों के आयात पर पड़ रहा है। कमजोर रुपये (Indian Rupee) के चलते आयात पर अधिक खर्च हो रहा है, जिससे महंगाई बढ़ने की संभावना तेज हो गई है।

सोने के आयात पर गहरा असर

GTRI ने चेतावनी दी है कि रुपये की गिरावट (Indian Rupee) भारत के सोने के आयात बिल को काफी बढ़ा सकती है। जनवरी 2025 तक वैश्विक बाजार में सोने की कीमतें 31.25% बढ़कर 86,464 डॉलर प्रति किलोग्राम हो चुकी हैं। यह जनवरी 2024 में 65,877 डॉलर प्रति किलोग्राम थी। कमजोर रुपये के कारण भारत को सोने के आयात के लिए अधिक भुगतान करना पड़ेगा, जो महंगाई को और अधिक बढ़ा सकता है।

महंगाई का नया दौर

GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “कमजोर रुपया आयात बिल को बढ़ाएगा, जिससे ऊर्जा और कच्चे माल की कीमतें बढ़ेंगी। इससे अर्थव्यवस्था पर दबाव और महंगाई में इजाफा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि बीते दशक के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि कमजोर रुपये का निर्यात पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। श्रीवास्तव ने बताया कि, हालांकि आम धारणा यह है कि कमजोर मुद्रा निर्यात को बढ़ावा देती है, लेकिन भारत के आंकड़े इसके विपरीत हैं। उच्च आयात वाले क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है, जबकि कपड़ा जैसे श्रम-गहन उद्योग लड़खड़ा रहे हैं।

विनिमय दर और निर्यात की असमानता

रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2024 के बीच कुल वस्तु निर्यात में 39% की वृद्धि हुई है। हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे उच्च आयात वाले क्षेत्रों में निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई। इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात में 232.8% और मशीनरी तथा कंप्यूटर निर्यात में 152.4% की वृद्धि दर्ज की गई। इसके विपरीत, परिधान और अन्य श्रम-गहन उद्योगों में गिरावट (Indian Rupee) देखी गई। कमजोर रुपये ने इन क्षेत्रों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के बजाय उन्हें नुकसान पहुंचाया।

भारत के लिए सुझाव

GTRI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत को दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए आयात-निर्यात संतुलन पर ध्यान देना होगा। रुपया प्रबंधन और व्यापारिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना जरूरी है। श्रीवास्तव ने कहा, भारत का 600 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार (Indian Rupee) अधिकतर ऋण और निवेश से बना है, जिसका ब्याज सहित भुगतान करना है। इससे रुपये को स्थिर रखने की कोशिशें सीमित हो जाती हैं।
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आगे की राह

भारत को अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करते हुए आयात पर निर्भरता कम करनी होगी। उच्च आयात वाले क्षेत्रों के स्थान पर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था को संतुलित करना होगा। GTRI की रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि रुपये की कमजोरी केवल एक मुद्रा समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है।

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