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इस साल कोरोना महामारी के कारण पूरे देश के कारोबार पर असर देखने को मिला। कई महीनों के लॉकाडाउन के कारण बाजार में पैसे का फ्लो नहीं हो सका। इस कारण मंदी छाई रही। वहीं पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी के कारण पूरे देश में महंगाई का असर दिखा। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो उस समय भारत में एक डॉलर की कीमत 4.16 रुपये थी। इसके बाद दो ऐसे मौके आए जब यह फासला तेजी से बढ़ा।
देश को दो बार आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा
आजादी के बाद से भारत को दो बार आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। यह साल थे 1991 और 2008। वर्ष साल 1991 में आई आर्थिक मंदी के पीछे आंतरिक कारण थे। मगर 2008 में वैश्विक मंदी के कारण भारत में अर्थव्यस्था पर असर दिखाई दिया था। 1991 में भारत के आर्थिक संकट में फंसने की बड़ी वजह भुगतान संकट था। इस दौरान आयात में भारी कमी आई थी, जिसमें देश दोतरफा घाटे में था।
देश के अंदर व्यापार संतुलन बिगड़ चुका था। सरकार बड़े राजकोषीय घाटे पर चल रही थी। खाड़ी युद्ध में 1990 के अंत तक, स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मुश्किल से तीन सप्ताह के आयात लायक बचा था। सरकार पर भारी कर्ज था जिसे चुकाने में वह असमर्थ थी।
बजट नहीं पेश कर थी सरकार
विदेशी मुद्रा भंडार घटने से रुपये में काफी तेज गिरावट आई थी। इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार फरवरी 1991 में बजट नहीं पेश कर सकी। कई वैश्विक क्रेडिट-रेटिंग एजेंसियों ने भारत को डाउनग्रेड कर दिया था। यहां तक की विश्व बैंक और आईएमएफ ने सहायता रोक दी। इसके बाद सरकार के पास देश के सोने को गिरवी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसकी मुख्य वजह रुपये की कीमत में तेजी से गिरावट आना और भारत पर निवेशकों का घटता भरोसा था।
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वहीं 2008 में आर्थिक मंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को उतना नुकसान नहीं पहुंचाया था, जितना अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओ को झेलना पड़ा। 2008 की मंदी के बाद भारत का व्यापार वैश्विक जगत से काफी घट गया था। आर्थिक विकास घटकर छह फीसदी तक चली गई थी।
बीते 75 साल में डॉलर के मुकाबले रुपया
– वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब भारत में एक डॉलर की कीमत 4.16 रुपये तक थी।
– वर्ष 1950 से 1965 तक करीब 15 वर्षों के लंबे अंतराल तक रुपया 4.76 रुपये प्रति डॉलर पर स्थिर बना रहा।
– वर्ष 1966 में अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा की कीमत में अचानक तेज गिरावट दर्ज की गई। एक डॉलर की कीमत 6.36 रुपए तक हो गई।
– वर्ष 1967 से लेकर 1970 के बीच एक डॉलर की कीमत स्थिर रही। ये 7.50 रुपये पर बनी रही।
– वर्ष 1974 में रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज करी गई। यह डॉलर के मुकाबले 8.10 रुपये स्तर पर पहुंच गई।
– इमरजेंसी के समय यानी 1975 में रुपया 28 पैसा तक गिरा। इस समय एक डॉलर की कीमत 8.38 रुपये हो गई।
– वर्ष 1983 में रुपया गिरकर 10.1 रुपये के स्तर पर पहुंच गया। वहीं वर्ष 1991 के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के कार्यकाल में देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई। उस समय रुपये में जोरदार गिरावट दर्ज की गई थी। डॉलर मजबूत हो गया। इस समय एक डॉलर की कीमत 22.74 रुपये हो चुकी थी।
– वर्ष 1993 में डॉलर के मुकाबले रुपया 30.49 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक यह 31.37 रुपये प्रति डॉलर से लेकर 36.31 रुपये प्रति डॉलर का उतार चढ़ाव देखा गया।
– वर्ष 1998 में देश में गैर-कांग्रेसी सरकार बनने की आहट के साथ ही रुपये में एक बार फिर जोरदार गिरावट देखगी गई। एक डॉलर की कीमत 41.26 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गई।
– वर्ष 2012 में रुपये में जोरदार गिरावट हुई और डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत 53.44 रुपये हो गई। इसके बाद वर्ष 2014 में जब देश में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो रुपये में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई। यह डॉलर के मुकाबले 62.33 रुपये प्रति डॉलर तक टूट। वर्ष 2018 में एक बार जोरदार गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान डॉलर के मुकाबले कीमत 70.09 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंची।