बुरहानपुर

महाभारत काल से जुड़ी है इस शिव मंदिर की कहानी

– प्राचीन है शिव मंदिर- श्रावण माह विशेष

बुरहानपुरAug 02, 2021 / 11:12 am

ranjeet pardeshi

The story of this Shiva temple is from the Mahabharata period

बुरहानपुर. जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर असीरगढ़ किले पर बना पांच हजार साल से भी अधिक प्राचीन असीरेश्वर मंदिर। जहां महाभारतकाल के अश्वत्थामा शिवजी की पूजा करने आते हैं। यह एक ऐसी किवदंती चली आ रही है। दुनिया का सबसे बढ़ा रहस्य अपने में समेटे असीरगढ़ किला उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाडियों के शिखर पर समुद्र तल से 750 फुट की ऊंचाई पर है। यह दुर्गम किला देखकर हर किसी की आंखें इस पर टिक जाती है। जब यहां लोग पहुंचकर शिव मंदिर में अश्वत्थामा द्वारा की जा रही पूजन के बारे में सुनते हैं तो हैरत में पड़ जाते हैं। इसे जानने के लिए मप्र के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं। अब यहां सावन के माह में भी पहुंचकर शिवजी की पूजा अर्चना कर रहे हैं।
मंदिर पर आते हैं हजारों भक्त
इस प्राचीन शिव मंदिर पर दर्शन करने के लिए हजारों भक्त आते हैं। सबसे अधिक सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगता है। जहां श्रद्धा कावड़ यात्रा भी शहर से निकलकर असीरेश्वर शिव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करती है। इसके अलावा महाशिवरात्रि पर भी भक्त दर्शन को पहुंचते हैं। लेकिन दो साल से कोरोना के कारण यहां की रंगत फिकी है।
वो अधिकार जमा लेता था
असीरगढ़ पर जो अधिकार जमा लेता था, उसका दक्षिण भारत पर भी आधिपत्य मान लिया जाता था। यही कारण है कि इसे दक्खन का द्वार कहा जाता है। कोई भी राजा या बादशाह जंग लड़कर इस किले को हासिल नहीं कर पाया। अधिकांश ने धोखे से या सौदा कर इस पर अधिकार जमाया। इसलिए इसे अजेय किला जाता है।

क्या कहते हैं इतिहासकार
बुरहानपुर के इतिहासकार होशंग हवलदार ने कहा कि हैहेय वंशी राजा आशा अहीर ने यह किला बनाया था। जहां पर शिव मंदिर बना हुआ है। इसका जिक्र तापी महापुराण में दिया हुआ है। किदवंती है कि अजय अमर अश्वत्थामा आज भी ताप्ती नदी में स्नान कर गुप्तेश्वर मंदिर के बिल रास्ते से निकलकर असीरगढ़ किले पर पहुंचते हैं। इनकी पूजा का प्रमाण यह है कि शिवलिंग पर ताजा फूल चढ़ा होता है और यह फूल बहुत अनोखा होता हैं, यह उन्होंने खुद भी देखा है।

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