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बांसी के ग्रामीण राजू तेली ने पहाड़ी पर एक बाघ के आने की सूचना वन विभाग को दी थी। इस पर विभाग के कर्मचारियों ने मौके पर जांच की तो उन्हें बाघ के पगमार्क मिले थे। उन्होंने इसकी सूचना रणथम्भौर अभयारण्य के अधिकारियों को दी। वहां से एक टीम मंगलवार को बांसी पहुंची और जंगल व गांव के पास स्थित पानी वाले स्थानों पर करीब सात कैमरे लगाए गए। कैमरे में बाघ की कई एक्टिविटी दिखाई गई। विचरण करने के साथ पानी पीते हुए बाघ को देखा जा रहा है। पहाड़ी से उतरकर गांव से पचास फीट की दूरी पर स्थित खाळ पर जाता है और पानी पीकर वापस पहाड़ी पर चला जाता है। बाघ की पूरी गतिविधि कैमरों में नजर आ रही है।
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ऐसे हुई पहचान
बाघ की निगरानी के लिए जंगल में लगाए गए कैमरों को रणथम्भौर से आई टीम ने खंगाला तो बाघ की पहचान टी ९१ के रूप में हुई। टीम के सदस्यों ने बताया कि टी ९१ कुछ दिनों पहले रणथम्भौर अभयारण्य से निकल गया था। उसके तलवास के जंगल की तरफ आने की सूचना मिली थी। अब कैमरोंं के माध्यम से इस सम्बंध में स्थिति स्पष्ट हो गई है।
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वनकर्मियों ने बताया कि पिछले चार दिन से बाघ पहाड़ी पर एक ही स्थान पर डेरा जमाए हुए हैं। वह केवल पानी पीने के लिए नीचे उतरता है। वनपाल कैमला नाका शिवकुमार ने बताया कि -बांसी गांव के पास नजर आ रहा बाघ टी 91 ही है, जो रणथम्भौर से पिछले कई दिनों से निकला हुआ है। बाघ की गतिविधियों पर निगरानी के लिए कैमरे लगाए गए हैं। उसकी निरन्तर ट्रैकिंग की जा रही है।
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टी-62 के रास्ते पर ही मिला पगमार्ग, रणथंभौर से मूवमेंट
एक बार फिर क्वालंजी के रास्ते टाइगर को देखा गया है। यह पहली बार नही जब यहां टाइगर देखे जा रहें है। रामगढ़ में २० के करीब टाइगर थे जिनका धीरे -धीरे शिकार हो जिससे घटते चले गए। ओर एक समय आया है बिल्कुल ही खत्म हो गए। मात्र एक ही रास्ता बचा था रणथ भोर से रामगढ आने का। इस बीच में ही लोगो ने जंगल खत्म करने का काम शुरू कर दिया। इससे इनका प्रयावास बिगड़ गया लेकिन वन विभाग की स ती से लोगो में चेतना आई। सब कुछ ठीक होने लगा। इससे यूं हुआ कि रणथ भौर से जो कनेक्टिविटी टूट गई थी वो वापस से जुड़ गई। 2004 में युवराज नाम का बाघ आया था लंबे समय तक यहां रहा उसका भी शिकार हो गया। अंतराल के बाद बाघो का आना जाना लगा रहा। रणथ भौर से क्वालंजी बना रहा। 24 अप्रेल 2014 में टी=62 बाघ रणथ भौर से निकलकर तलवास के जंगलों में सेट हुआ जो अपना मार्ग बनाते हुए रामगढ़ पहुंच गया। यहां उसने एक साल गुजारा। यहां मादा टाइगर कमी के कारण यह वापस चला गया। लेकिन अब एक नया रास्ता टाइगरों के आने का खुल चुका है। इसी का नतीजा है कि टी 92 वापस यहां पर उसी रास्ते से आया है जिससे पहले टी-62 यहां आया था।