बूंदी

नए इलाके की तलाश में टी91 टाइगर, रणथंभौर से निकलकर पहुंचा बूंदी

बाघ यहां बासी के निकट तीन दिन से अपनी जगह तलाश रहा है।

बूंदीNov 21, 2017 / 04:44 pm

Suraksha Rajora

Bagh

बूंदी- रणथ भौर से निकलकर क्वालंजी के रास्ते से एक बार फिर बाघ तलवास के जंगलों में पहुंच गया। बाघ यहां बासी के निकट तीन दिन से अपनी जगह तलाश रहा है। वन विभाग ने पगमार्क लेने के बाद बाघ के बासी के निकट जंगल में मौजूद होने की पुष्टि कर दी है। बाघ की सुरक्षा के लिए टीम गठित कर ट्रैकिंग भी शुरू कर दी है। सुरक्षा और पुख्ता हो इसके लिए रणथभौर बाघ परियोजना सवाईमाधोपुर के अधिकारियों को सूचना भेजी गई है।

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बाघ के तलवास के जंगल में होने की सूचना ग्रामीण राजूलाल तेली ने दी है। सूचना पर वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी पहुंचे और पगमार्क तलाशे। उसके तलवास पंचायत के बासी के निकट जंगल में होने की पुष्टि हुई है। बाघ की हर गतिविधि पर नजर रहे इसके लिए वन विभाग ने टीम गठित की है।

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टी-62 रह चुका है रामगढ़
टी-62 बाघ रणथ भौर राष्ट्रीय उद्यान की टी-8 का शावक है। यह बाघ वर्ष 2014 में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में आया था। जहां एक साल तक रुका था। इसके बाद इसका आवागमन तलवास रेंज व रणथ भौर के फलौदी क्वारी तक बना हुआ है। क्षेत्रीय वन अधिकारी इंद्रगढ़ रामबाबू शुक्ला ने बताया कि तीन दिन पहले बाघ के पगमार्क मिले थे। सुरक्षा के लिए टीम गठित कर दी। रणथ भौर बाघ परियोजना सवाईमाधोपुर के अधिकारियों को सूचना भेज दी गई है।

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टी-62 के रास्ते पर ही मिला पगमार्ग, रणथंभौर से मूवमेंट
एक बार फिर क्वालंजी के रास्ते टाइगर को देखा गया है। यह पहली बार नही जब यहां टाइगर देखे जा रहें है। रामगढ़ में 20 के करीब टाइगर थे जिनका धीरे -धीरे शिकार हो जिससे घटते चले गए। ओर एक समय आया है बिल्कुल ही खत्म हो गए। मात्र एक ही रास्ता बचा था रणथ भोर से रामगढ आने का। इस बीच में ही लोगो ने जंगल खत्म करने का काम शुरू कर दिया। इससे इनका प्रयावास बिगड़ गया लेकिन वन विभाग की स ती से लोगो में चेतना आई। सब कुछ ठीक होने लगा। इससे यूं हुआ कि रणथ भौर से जो कनेक्टिविटी टूट गई थी वो वापस से जुड़ गई। 2004 में युवराज नाम का बाघ आया था लंबे समय तक यहां रहा उसका भी शिकार हो गया। अंतराल के बाद बाघो का आना जाना लगा रहा। रणथ भौर से क्वालंजी बना रहा। 24 अप्रेल 2014 में टी=62 बाघ रणथ भौर से निकलकर तलवास के जंगलों में सेट हुआ जो अपना मार्ग बनाते हुए रामगढ़ पहुंच गया। यहां उसने एक साल गुजारा। यहां मादा टाइगर कमी के कारण यह वापस चला गया। लेकिन अब एक नया रास्ता टाइगरों के आने का खुल चुका है। इसी का नतीजा है कि टी 91 वापस यहां पर उसी रास्ते से आया है जिससे पहले टी-62 यहां आया था।

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