15 वीं शताब्दी में जब किलेदार नाहर खानसिंह ने नैनवां को टाउन प्लानर के हिसाब से बसाया था तो कस्बे के दोनों ओर निकलने वाले खाळों के पानी को सुरक्षा के लिए कस्बे के चारों ओर बनाए परकोटे को ही तालाबों का रूप दिया गया था। दोनों तालाबों का नामकरण करके कस्बे के उत्तर वाले तालाब को कनकसागर व पश्चिम वाले तालाब को नवलसागर का नाम दिया था।
पाळ की सार-सम्भाल नही किए जाने से दोनों तालाबों की पाले दो-दो स्थानों से टूट जाने से खोखली होती जा रही है। पाळ की समय रहते मानसून से पहले सुध नहीं ली तो तालाबों के टूटने का खतरा हो जाएगा। कनकसागर की तालाब का नीलकंठ महादेव के पास 15 फीट हिस्सा व द्वारिकाधीश के पास का 20 फीट हिस्सा टूटकर तालाब में समा चुका है। हवा के साथ आती पानी की हिलोरों से पाल लगातार क्षतिग्रस्त होती जा रही है। नीलकंठ के पास टूटे हिस्से से मन्दिर परिसर को व द्वारिकाधीश के पास टूटे हिस्से से वहां बने कुएं के भी तालाब में समाने की स्थिति बनी हुई है। नवलसागर तालाब की पाळ में गंधर्व छतरी के पास पाल अंदर से खोखली होती जा रही है, जिससे पाळ का लगभग आठ फीट हिस्सा टूटकर तालाब के अंदर गिर गया। पाळ खोखली होने से रिसाव हो रहा। बादलिया बाग के घाट के पास भी पाल ढह गई, जिससे बादलिया बाग की दीवार को भी खतरा बन गया। कनक सागर 318 बीघा 14 बिस्वा व नवलसागर 317 बीघा 11 बिस्वा में फैला हुआ है।
सिर्फ चेतावनी बोर्ड लगा रखा
तालाबों को संरक्षण प्रदान करने के नाम पर प्रशासन की ओर से नगरपालिका ने चेतावनी बोर्ड लगा रखा है कि जिस पर लिखा है कि तालाब की पाळ क्षतिग्रस्त है।
तालाबों को संरक्षण प्रदान करने के नाम पर प्रशासन की ओर से नगरपालिका ने चेतावनी बोर्ड लगा रखा है कि जिस पर लिखा है कि तालाब की पाळ क्षतिग्रस्त है।
मरम्मत नहीं हो सकती
नगरपालिका अध्यक्ष प्रेमबाई का कहना है कि दोनों तालाबों की पालें कुछ स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गई थी। तालाब लबालब होने से अभी मरम्मत नहीं हो सकती।
नगरपालिका अध्यक्ष प्रेमबाई का कहना है कि दोनों तालाबों की पालें कुछ स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गई थी। तालाब लबालब होने से अभी मरम्मत नहीं हो सकती।